Google pe name nahin hai Part 4

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सईद के वर्कशॉप की खाली दीवारें अब किसी तहक़ीक़ाती म्यूज़ियम की तरह लग रही थीं — जहाँ हर औज़ार एक सबूत था, हर धूल भरी मशीन एक चश्मदीद गवाह। मगर वहाँ अब सईद नहीं था, और यही सबसे बड़ा सुराग़ था। कमरे में पसरा सन्नाटा जैसे इहान के कानों में सरगोशियाँ कर रहा था — “अब तू अकेला नहीं सिर्फ़ इस लड़ाई में, बल्कि अब तेरी तलाश भी एक निशाना बन चुकी है।”

उसने टेबल पर रखे उसी कैमरे को फिर से उठाया। मगर अब उसका वज़न बदला-बदला सा लग रहा था — जैसे किसी ने उसमें से उसकी आत्मा निकाल ली हो। रील की ग़ैरमौजूदगी सिर्फ़ एक फुटेज की कमी नहीं थी, बल्कि एक पूरा सबूत अब हवा में घुल चुका था। मगर इहान जानता था, सच कभी पूरी तरह मिटता नहीं — वो किसी न किसी शक्ल में ज़िंदा रहता है।

सईद की ग़ायबी एक साफ़ इशारा थी — D-8 सिर्फ़ एक केस नहीं, एक दरवाज़ा था ऐसे राज़ों की ओर जिन्हें छूना भी मना था। और अब, उसे एक नया सुराग़ मिला था — “73-B से 14-Z तक…”। वो कोड अब उसकी डायरी के सबसे अहम पन्ने पर दर्ज हो चुका था।

इहान ने शहर के पुराने ज़िलों के नक्शे उठाए, और उसकी आँखें एक जगह ठिठक गईं — सेक्टर 73-B… कभी पुलिस क्वार्टर हुआ करता था, अब खंडहर। और 14-Z… वो इलाका जहाँ कभी एक ‘सुरक्षा प्रशिक्षण केंद्र’ हुआ करता था, मगर आज वहां सिर्फ़ एक वीरान मैदान है।

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सईद के गायब होने के साथ, ये अब सिर्फ़ एक जर्नलिस्ट की स्टोरी नहीं थी — अब यह एक लड़ाई थी उस सिस्टम से, जो नाम मिटाता नहीं, उन्हें निगल जाता है।अब ईहान उस से आगे बढ़ता है

वीरान मैदान की तरफ जहाँ एक वक़्त ‘सुरक्षा प्रशिक्षण केंद्र’ की दीवारें हुआ करती थीं, अब मिट्टी और ख़ामोशी के हवाले था। इहान ने जब पहली बार वहाँ क़दम रखा, तो लगा जैसे वो किसी ज़िंदा जगह में नहीं, एक भूतिया याद के भीतर दाख़िल हो गया हो। हवा में गंध थी पुराने लोहे, जले हुए दस्तावेज़ों और उस साज़िश की, जो कभी यहाँ रची गई होगी।

चारों तरफ़ सिर्फ़ उजाड़ फैला था — टूटी हुई बेंचें, दीवारों के अधूरे निशान, ज़मीन में धँसे बिजली के पोल और एक जंग लगा हुआ दरवाज़ा, जिस पर अब भी धुंधले अक्षरों में लिखा था — “Zone Restricted: Internal Use Only.”

इहान ने अपनी जेब से सईद की दी हुई छोटी टॉर्च निकाली और ज़मीन पर बने पुराने निशानों को देखना शुरू किया। मिट्टी में जैसे कुछ दबा हुआ था — एक लोहे का ढक्कन, जो किसी गुप्त तहखाने का दरवाज़ा हो सकता था। मगर उससे भी ज़्यादा हैरान करने वाला था, वहाँ पड़ा एक पुराना बैच — ‘D-8 Internal Security Division’।

उस बैच को उठाते ही इहान को जैसे बिजली का झटका लगा — उसकी उंगलियों में सिहरन दौड़ गई। ऐसा लगा जैसे ये महज़ एक धातु का टुकड़ा नहीं, बल्कि किसी भटकी हुई आत्मा का लाशा हो।

वो जानता था, अब जो कुछ भी आगे होगा, वो साधारण नहीं होगा। उसके सामने एक ऐसा रास्ता खुल चुका था, जिसमें हर कदम के नीचे एक सच दबा था — और हर सच के पीछे एक साज़िश।

इहान ने अपनी सांसें रोकीं, और वो ढक्कन धीरे से उठाया। नीचे अंधेरा था — ठंडा, गाढ़ा और बेचैन करने वाला। उसने बिना पलटे, उस अंधेरे में उतरने का फ़ैसला कर लिया।

Google pe name nahin hai part 4 तहखाने की सांसें और दीवारों की गवाही

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इहान ने जैसे ही उस लोहे के ढक्कन को पूरी तरह हटा दिया, नीचे उतरने की सीढ़ियाँ सामने थीं — जंग लगी, मगर अब भी मज़बूत। हवा में नमी और कुछ सड़ा हुआ था, जैसे सालों से वहाँ कोई सांस नहीं ली गई हो। लेकिन इहान को रुकना नहीं था। उसने टॉर्च को थोड़ा ऊँचा किया और एक-एक कदम नीचे उतरता गया, हर सीढ़ी एक नई बेचैनी की तरफ़ ले जा रही थी।

नीचे पहुँचकर उसने पाया कि यह तहख़ाना असल में कोई साधारण जगह नहीं थी। यह एक पूरा नेटवर्क था — दीवारों पर जगह-जगह पर नंबर कोड, कुछ पुराने कैमरे, और एक नियंत्रण कक्ष जैसा हिस्सा जहाँ कंप्यूटर टर्मिनल अब भी धूल से ढँके पड़े थे। दीवारों पर कुछ पुराने चार्ट और नक़्शे लगे थे — ‘ऑपरेशन HADES’, ‘CONTROL ZONE DELTA’, और एक पिनबोर्ड जिसमें अब भी कुछ नाम चुभे हुए थे: “Saeed A. Khan, D-8 Operator”, “Raghav Sheel, Intel Officer”, “Subject #47 – Status: Unstable”.

इहान की साँस रुक गई। “Subject #47”? क्या ये वही था जिसके बारे में सईद ने कभी इशारों में कहा था? क्या ये उसी पर चलाया गया था कोई प्रयोग?

वो एक कोने में पहुँचा जहाँ एक फाइलिंग कैबिनेट टूटी हालत में पड़ा था। उसमें से निकली एक अधजली फाइल में दर्ज था — “Operation Neural Decay — Human Subject Test Report”, और नीचे एक फोटो… जो साफ़ नहीं थी, मगर शक्लें जानी-पहचानी थीं। उनमें से एक, बिल्कुल सईद की तरह दिखती थी।

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इहान ने काँपते हाथों से दीवार पर लगे एक स्विच को दबाया — और कुछ लाइट्स जल उठीं। सामने एक काँच की मोटी दीवार थी, जिसके उस पार एक कमरा था। और वहाँ, उस कमरे में एक कुर्सी पर बंधा हुआ शरीर… या शायद उसकी परछाई… जो अब भी हिल रही थी।

इहान की आँखें फैल गईं। क्या ये कोई बचा हुआ गवाह था? या फिर वही “Subject #47”? कमरे की हवा एकदम ठंडी हो गई। जैसे दीवारों ने खुद गवाही देने की ठान ली हो।

इहान जान चुका था — ये सिर्फ़ एक तहख़ाना नहीं है।ये उन सवालों की क़ब्रगाह है, जिन्हें कभी ज़ुबान नहीं मिली…और अब शायद जवाब उसे ही बनना होगा।

ज़िंदा साज़िश का चेहरा

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इहान का गला सूखने लगा। उस काँच की मोटी दीवार के पार जो भी था, वो अब उसकी सोच से परे जा चुका था। वह परछाई जो पहले धीमे-धीमे हिल रही थी, अब थोड़ी और स्पष्ट हो चुकी थी। एक कुर्सी पर जकड़ा हुआ इंसान — या यूँ कहिए, एक गवाही करता शरीर — जिसकी हर हरकत से लगता था जैसे वो अब भी कुछ कहना चाहता हो, लेकिन सालों की बंदिशों ने उसकी आवाज़ को तहख़ाने की दीवारों में कैद कर रखा हो।

इहान ने चारों तरफ़ देखा। दीवार के पास एक पुराना इंटरकॉम लगा था — मरा हुआ, लेकिन उसके नीचे एक छोटा-सा बटन अब भी चमक रहा था। शायद यह आख़िरी बचा हुआ कनेक्शन था, इस ‘Subject #47’ से। उसने झिझकते हुए बटन दबाया।

कुछ पल ख़ामोशी रही, फिर उस तरफ़ से एक बेहद कमज़ोर, खुरदुरी आवाज़ आई — “क…कौन…सईद…आया?”इहान के रोंगटे खड़े हो गए।”मैं सईद का दोस्त हूँ… पत्रकार हूँ… सच्चाई की तलाश में आया हूँ,” उसने धीरे से जवाब दिया।

कमरे में बैठे उस व्यक्ति ने सिर उठाया, उसकी आँखें सूजी हुई थीं, जैसे वर्षों से रोशनी नहीं देखी थी। फिर वह बोला, “अगर तू सईद का दोस्त है, तो जान ले… सईद मरा नहीं था… उसे सिस्टम ने ज़िंदा मिटा दिया… मैं हूँ सबूत… मैं हूँ उसका अधूरा सच…”

इहान का सिर घूमने लगा। तो यह वही था — Subject #47। एक इंसान जिसे इंसान नहीं समझा गया। जिसे किसी ऑपरेशन का हिस्सा बनाकर, ज़िंदा रहते हुए ही इतिहास से मिटा दिया गया।

कमरे के एक कोने में लगे सीसीटीवी मॉनिटर में कुछ वीडियो फुटेज अब भी लूप में चल रहे थे। उनमें कुछ अजीबो-ग़रीब प्रयोग, इंजेक्शन, और गुप्त सैन्य अधिकारियों की मीटिंग्स रिकॉर्ड थीं।

इहान समझ चुका था — यह तहख़ाना सिर्फ़ एक छिपी हुई जगह नहीं, बल्कि वो फंदा था जहाँ सच को साँसें लेने नहीं दी गईं। और Subject #47… अब भी जी रहा था, ताकि कोई उसका सच दुनिया को बता सके।

इहान ने काँच के सामने खड़े होकर कैमरा निकाला।“अब तुम्हारा चेहरा सब देखेंगे… तुम्हारी आवाज़ दबेगी नहीं।”और तभी — अचानक पीछे से एक दरवाज़ा धीरे से खुला।किसी और की भी मौजूदगी थी वहाँ.लेकिन कौन?

जिसे कोई देख नहीं रहा था

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दरवाज़ा बहुत धीरे से खुला था, जैसे किसी ने जानबूझकर आवाज़ दबाने की कोशिश की हो। इहान ने कैमरे को तुरंत नीचे किया और पलटकर देखा — अंधेरे में कोई आकृति खड़ी थी, धुंधली, शांत… लेकिन उसमें कुछ ऐसा था जो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। उस शख़्स ने ना कुछ कहा, ना आगे बढ़ा, बस खड़ा रहा — जैसे देख रहा हो कि इहान क्या करता है, कितना जान चुका है।

इहान ने टॉर्च की रौशनी उस ओर घुमाई, लेकिन जैसे ही प्रकाश उस आकृति तक पहुँचा, वो साया तेजी से एक ओर हट गया, दीवारों के पीछे ग़ायब हो गया। उसके क़दमों की आवाज़ गूंजती रही — हल्की, मगर तीखी। अब इहान बिल्कुल अकेला नहीं था, ये साफ़ हो गया था।

Subject #47 अब भी शांत बैठा था, लेकिन उसकी आँखें अब इशारा कर रही थीं — जैसे किसी खतरे की आहट को पहले ही महसूस कर लिया हो। इहान ने फिर इंटरकॉम का बटन दबाया, “कौन था वो? क्या तुमने भी देखा?”

Subject #47 की आवाज़ काँपती हुई आई — “वो… वो इनमें से एक है… D-8 के रह जाने वाले। वो नहीं चाहते कि मैं बोलूं… और अब, तुम भी उनकी लिस्ट में आ चुके हो…”

इहान के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। यह सिर्फ़ एक रिपोर्ट नहीं रह गई थी, यह अब एक भागदौड़ थी — एक साज़िश के बचे हुए पहरेदार और एक गुमनाम गवाह के बीच।

कमरे की छत पर लगे वेंट से कुछ फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं — जैसे कोई और कहीं पास ही में सांस ले रहा हो। इहान ने कैमरे को संभाला और एक कोने में छुपते हुए अपने फोन से बैकअप रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। उसे समझ आ गया था, अब जो कुछ भी होगा, वो उसके शब्दों से ज़्यादा उसके सबूत बोलेंगे।

Subject #47 ने धीरे से एक शब्द कहा — “बिल्डिंग B… वहाँ सारे दस्तावेज़ हैं… मेरी फाइलें, सईद की रिपोर्ट्स… जो भी चाहिए, वहीं है। लेकिन जल्दी करो…”इहान ने गर्दन घुमाई — दरवाज़ा अब भी खुला था। मगर वो साया कहीं दिख नहीं रहा था।क्या वो निगरानी कर रहा था? या फिर उसका अगला क़दम उठाने जा रहा था?

इहान को अब रुकना नहीं था।उसे उस साये से पहले सच तक पहुँचना था…या फिर गुमनाम हो जाना था — उसी तहख़ाने में, जिसकी फ़िज़ाओं में अब तक चीख़ें दबी थीं।

बिल्डिंग B दस्तावेज़ों की कब्रगाह

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इहान ने एक गहरी साँस ली और धीमे क़दमों से तहख़ाने के उस दरवाज़े की ओर बढ़ा जो अभी-अभी खुला था। बाहर निकलते ही उसने इधर-उधर देखा — अब भी कहीं वो साया नज़र नहीं आ रहा था, लेकिन उसकी मौजूदगी हवा में थी… भारी, घुटन भरी, और अजीब तरह से चेतावनी देती हुई।

Subject #47 की बात उसके ज़ेहन में गूंज रही थी — “बिल्डिंग B…”वो इमारत जो अब तक बस एक नक़्शे का हिस्सा थी, अब उसकी मंज़िल बन गई थी।

जैसे ही वो तहख़ाने से बाहर आया, वीरान परिसर में सन्नाटा और गहरा हो गया। पुराने नक़्शे के सहारे इहान ने बिल्डिंग B की दिशा तय की। उस टूटी हुई ज़मीन पर चलते हुए हर क़दम भारी था — कहीं से भी कोई आवाज़, कोई हरकत आ सकती थी।

और अचानक, उसे सामने एक दरवाज़ा दिखा — ज़ंग खाया हुआ, लेकिन उसके किनारों पर नए निशान थे… जैसे हाल ही में किसी ने उसे इस्तेमाल किया हो।इहान ने दरवाज़ा खोला। अंदर की हवा और भी ठंडी थी — जैसे समय यहाँ थम गया हो।

कमरे के अंदर धूल से ढंके कैबिनेट, अधजले दस्तावेज़, और प्लास्टिक के ढँके कंप्यूटर पड़े थे। दीवारों पर पुराने चार्ट और तस्वीरें थीं — कुछ पर सिर्फ़ कोड थे, कुछ पर चेहरों की तस्वीरें। लेकिन सबसे कोने में एक लाल टैग वाली अलमारी थी, जिस पर लिखा था — “Confidential: Eyes Only – D8 Security Council”.

इहान ने जैसे ही उसे खोला, उसके सामने एक गत्ते का बॉक्स पड़ा था — और उसमें वही दस्तावेज़, जिसकी तलाश में वो यहां तक आया था।फाइल के पहले पन्ने पर लिखा था — “Saeed A. Khan — Final Transmission Log”.

उसके नीचे कुछ फोटोज़ थीं, जो शायद कभी दुनिया के सामने नहीं आ सकीं — सईद का आखिरी मिशन, एक नक़ाबपोश मीटिंग, और एक फ़ोटो… जिसमें वही शख्स था जो तहख़ाने के दरवाज़े पर खड़ा था।

इहान को अब यक़ीन हो चुका था — यह महज़ एक ऑपरेशन नहीं, एक राज्य प्रायोजित भुला देने की साज़िश थी। और अगर ये सब बाहर आया, तो न सिर्फ़ बहुतों की नींद टूटेगी… बल्कि इतिहास दोबारा लिखा जाएगा।

लेकिन तभी — बिल्डिंग के एक कोने से फाइल के पन्ने उड़ने लगे… और पीछे से वही साया एक बार फिर नज़र आया।अब या तो इहान सब उजागर करेगा… या उसी धूल में खो जाएगा, जिस पर नाम कभी नहीं लिखे जाते।

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