Mazdur Se Bana Engineer सीमेंट की धूल में छुपे सपने
दिल्ली की गर्मी में जलते हुए कंस्ट्रक्शन साइट पर सुबह की शुरुआत ईंटों और सीमेंट के ढेर के साथ होती। राहुल, जिसकी उम्र अभी बीस साल ही थी, अपने साथियों के साथ मिलकर ईंटें ढो रहा था। उसके हाथों में छाले पड़ चुके थे और पीठ दर्द से तड़प रही थी, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। जब सभी मजदूर दिनभर की थकान के बाद सो जाते, राहुल अपनी झोपड़ी के एक कोने में बैठकर पुरानी टेक्नोलॉजी मैगज़ीनों के पन्ने पलटता।
कंप्यूटर और लैपटॉप की तस्वीरें देखकर उसकी आँखों में एक सपना जगता – एक दिन वह भी आईटी इंजीनियर बनेगा। राहुल के पिता का निधन बचपन में ही हो गया था, और परिवार की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई थी। दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद उसे पैसों की कमी के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी और कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करना पड़ा। उसकी दिनचर्या सुबह पांच बजे शुरू होती और शाम को सात बजे खत्म होती। ईंटें ढोना, सीमेंट मिलाना, और मजदूरों के लिए चाय बनाना – यही उसकी जिंदगी थी।
लेकिन एक दिन जब वह साइट के मैनेजर के कमरे में चाय देने गया, तो उसने देखा कि मैनेजर एक लैपटॉप पर काम कर रहे हैं। राहुल वहीं खड़ा हो गया, लैपटॉप की स्क्रीन को देखता रहा। मैनेजर ने पूछा, “क्या बात है राहुल? कुछ चाहिए?” राहुल ने हिचकिचाते हुए पूछा, “सर, यह चीज कैसे चलती है?” मैनेजर ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह कंप्यूटर है बेटा, इसमें दुनिया भर का ज्ञान है।” उस दिन राहुल ने ठान लिया कि वह एक दिन कंप्यूटर जरूर सीखेगा। उसने अपनी छोटी सी बचत में से पैसे जोड़ने शुरू किए।
जब दूसरे मजदूर चाय पीते या फिल्में देखते, राहुल अपनी झोपड़ी में बैठकर अंग्रेजी के नए शब्द सीखता। उसने एक पुरानी मोबाइल फोन खरीदी और इंटरनेट के जरिए प्रोग्रामिंग की बुनियादी बातें सीखनी शुरू की। यह आसान नहीं था। थकान भरे दिन के बाद रात में पढ़ाई करना, अंग्रेजी की समझ न होना, और सही मार्गदर्शन का अभाव – लेकिन राहुल ने हार नहीं मानी। उसका सफर अभी शुरू ही हुआ था, और आने वाले दिनों में उसे कई चुनौतियों का सामना करना था।
Mazdur Se Bana Engineer तानों और संघर्षों के बीच जुनून की लौ
राहुल के सफर में सबसे बड़ी रुकावट थी उसके अपने ही साथी। जब वह रात में पुराने टैबलेट पर कोडिंग सीखता, तो अन्य मजदूर उसका मजाक उड़ाते। “अरे सॉफ्टवेयर इंजीनियर साहब! आज कितने कोड लिखे?” एक मजदूर तो हमेशा कहता, “तू मजदूर का बेटा मजदूर ही रहेगा, यह सब दिवास्वप्न छोड़ दे।” राहुल के हाथों में छाले पड़े हुए थे, पीठ दर्द से तड़पती थी, पर वह थकान के बावजूद रोज 3-4 घंटे पढ़ाई करता।
उसकी माँ ने जब उसे रात भर जागते देखा तो पूछा, “बेटा, इतनी मेहनत क्यों कर रहा है? तू तो पहले से ही दिनभर काम करके थक जाता है।”राहुल ने जवाब दिया, “माँ, मैं तुम्हें और बहन को गरीबी से बाहर निकालूंगा।” धीरे-धीरे उसने HTML और CSS सीख ली, लेकिन JavaScript आने पर उसे बहुत दिक्कत हुई। एक कॉन्सेप्ट समझने में उसे 15 दिन लगे, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने एक ऑनलाइन कोर्स जॉइन किया, जो महंगा था, लेकिन उसने किसी तरह फीस भरी।
अब उसकी दिनचर्या और भी व्यस्त हो गई। सुबह चार बजे उठना, फिर कोडिंग प्रैक्टिस करना, उसके बाद कंस्ट्रक्शन साइट पर काम पर जाना, और शाम को वापस आकर फिर से पढ़ाई करना।
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खाने-सोने का समय भी नहीं रहा। एक बार तो वह काम के दौरान ही थकान के मारे गिर पड़ा। साइट के मैनेजर ने उसे डांटा जरूर, लेकिन अंदर ही अंदर उसे राहुल की लगन पर गर्व भी था। मैनेजर ने उसे एक पुराना लैपटॉप दिया, जिससे राहुल की मुश्किलें कुछ आसान हुईं। अब वह ज्यादा बेहतर ढंग से प्रैक्टिस कर पाता। धीरे-धीरे उसने HTML, CSS और JavaScript सीख ली। उसने छोटे-छोटे वेब पेज बनाने शुरू किए। हालांकि उसके पास कोई डिग्री नहीं थी, लेकिन उसका प्रैक्टिकल नॉलेज बढ़ता जा रहा था।
एक साल की कड़ी मेहनत के बाद राहुल ने एक छोटी सी वेबसाइट बना ली, जो उसकी पहली उपलब्धि थी। लेकिन अब उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी – एक नौकरी पाना। बिना डिग्री के कोई उसे नौकरी क्यों देगा? यह सवाल राहुल के दिमाग में हमेशा घूमता रहता। उसने कई कंपनियों में अप्लाई किया, लेकिन हर जगह से उसे निराशा ही हाथ लगी। कुछ कंपनियों ने तो उसका रिज्यूमे देखकर ही मना कर दिया। राहुल का हौसला थोड़ा डगमगाने लगा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने ठान लिया कि वह अपनी काबिलियत से सबको दिखाएगा।
वह दुर्घटना जिसने सब कुछ बदल दिया
राहुल की मेहनत रंग ला रही थी, लेकिन तभी एक हादसा हो गया। कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करते हुए ईंटों के ढेर से उसका पैर दब गया। डॉक्टर ने एक महीने का आराम बताया। इस दौरान साइट मैनेजर ने उसे नौकरी से निकाल दिया। अब राहुल के पास न नौकरी थी, न पैसे। उसकी बहन की शादी का समय नजदीक था और घर का हालत खराब। पड़ोसियों ने कहा, “अब कोडिंग छोड़कर कोई काम कर ले।” लेकिन राहुल ने इन हालातों में भी हिम्मत नहीं हारी। उसने ठीक होते ही एक छोटी सी दुकान पर सहायक की नौकरी शुरू की और शाम को कोडिंग प्रैक्टिस जारी रखी।
उसने ऑनलाइन प्रोजेक्ट्स लेने शुरू किए और छोटे-छोटे वेबसाइट बनाकर पैसे कमाने लगा। एक दिन की बात है, राहुल ने अखबार में एक छोटी सी खबर पढ़ी। एक आईटी कंपनी में फ्रेशर्स के लिए कोडिंग कॉम्पिटिशन होने वाला था। इसमें डिग्री की जरूरत नहीं थी, बल्कि सिर्फ स्किल्स की परख होनी थी। राहुल के लिए यह एक सुनहरा मौका था। उसने तुरंत अपना नाम रजिस्टर कराया। कॉम्पिटिशन के दिन, राहुल ने अपने सबसे अच्छे कपड़े पहने और कंपनी के ऑफिस पहुंचा। वहां पहुंचकर वह हैरान रह गया। सभी प्रतिभागी अच्छे कॉलेजों से थे, और सबके हाथों में महंगे लैपटॉप थे।
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राहुल के पास तो वही पुराना लैपटॉप था जो मैनेजर ने दिया था। कुछ लोगों ने उसके साधारण कपड़ों और पुराने लैपटॉप को देखकर अजीब नजरों से देखा। राहुल का दिल बैठा जा रहा था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। कॉम्पिटिशन शुरू हुआ। सभी प्रतिभागियों को एक वेब एप्लिकेशन बनाना था। राहुल ने पूरी एकाग्रता के साथ काम शुरू किया। उसने अपने आप को याद दिलाया कि यह उसकी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण मौका है। कंपटीशन के दौरान, राहुल ने एक ऐसी वेबसाइट बनाई जो न सिर्फ functional थी, बल्कि user-friendly भी थी।
उसने अपने कोड में कुछ innovative features भी जोड़े। जब results announce किए गए, तो राहुल का नाम पहले स्थान पर था। कंपनी के मैनेजर ने उसकी प्रतिभा की सराहना की और उसे नौकरी की पेशकश की। राहुल के लिए यह एक सपने के सच होने जैसा था। उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। उसने कंस्ट्रक्शन साइट के मैनेजर को खबर सुनाई, जिन्होंने उसे गले लगा लिया।
अब राहुल एक आईटी कंपनी में जूनियर डेवलपर के रूप में काम करने वाला था। पहले दिन ऑफिस पहुंचने पर उसे एहसास हुआ कि उसकी मेहनत रंग लाई है। अब वह साफ-सुथरे कपड़े पहनता, एयर कंडीशंड ऑफिस में बैठता, और अपना लैपटॉप इस्तेमाल करता। लेकिन राहुल को अपनी जड़ें याद थीं। वह अभी भी वही विनम्र और मेहनती इंसान था।
सफलता की नई इबारत
आज राहुल एक सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। उसने न सिर्फ अपनी जिंदगी बदली, बल्कि दूसरे युवाओं के लिए भी एक मिसाल कायम की। उसने एक छोटी सी संस्था शुरू की है, जहां वह गरीब बच्चों को मुफ्त में कोडिंग सिखाता है। राहुल का मानना है कि शिक्षा और हौसला हो, तो कोई भी अपनी किस्मत बदल सकता है। वह अक्सर अपनी कहानी सुनाता है, ताकि दूसरे युवा भी हिम्मत न हारें।
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राहुल की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि उन सभी युवाओं के लिए एक संदेश है जो मुश्किल हालात से जूझ रहे हैं। उसने साबित किया कि मेहनत और लगन से इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है।
आज राहुल को देखकर कोई नहीं कह सकता कि कभी वह एक कंस्ट्रक्शन वर्कर था। लेकिन राहुल को अपनी पिछली जिंदगी पर गर्व है, क्योंकि उसने उन हालात को अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत बनाया। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि सपने देखना और उन्हें पूरा करने की कोशिश करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए। राहुल आज भी मेहनत से काम करता है, लेकिन अब उसकी मेहनत का मकसद सिर्फ खुद नहीं, बल्कि समाज की भलाई है।
उसने साबित कर दिया कि इंसान चाहे किसी भी पृष्ठभूमि से हो, अगर उसमें सीखने की ललक और कुछ कर दिखाने का जुनून हो, तो वह दुनिया बदल सकता है।
राहुल की कहानी एक ऐसी प्रेरणा है जो हमें याद दिलाती है कि हर सफलता की कहानी के पीछे संघर्ष और मेहनत की एक लंबी दास्तान होती है। उसने साबित किया कि इंसान चाहे किसी भी पृष्ठभूमि से हो, अगर उसमें सीखने की ललक और कुछ कर दिखाने का जुनून हो, तो वह दुनिया बदल सकता है। राहुल की कहानी एक ऐसी प्रेरणा है जो हमें याद दिलाती है कि हर सफलता की कहानी के पीछे संघर्ष और मेहनत की एक लंबी दास्तान होती है।