Gaon Ka Ladka IAS Officer Bana ताने, ठहाके और सपना
ग़रीब का बच्चा… किताबों में क़िस्मत ढूँढ रहा है? अरे बेटा, तेरे लिए तो खेत हैं, हल है और मजदूरी… IAS का ख़्वाब मत देख, ये तेरे बस की बात नहीं! गाँव के चौपाल पर बैठे लोग ताने कसते, हँसते और ठहाके लगाते।लेकिन वो लड़का… आँखें झुकाता नहीं था, बल्कि सीना ठोक कर कहता –
एक दिन यही मिट्टी देखेगी… इसका बेटा अफ़सर बनेगा!फटी चप्पलें, टूटी चारपाई, और लालटेन की टिमटिमाती रोशनी…यही उसका स्कूल था, यही उसका क्लासरूम।भूख से लड़ते पेट को उसने किताबों के सपनों से भर दिया।रात को जब पूरा गाँव सो जाता,तो वो खुद से कहता –
“नींद तो अमीरों के लिए है… मेरे लिए बस मेहनत है। लोग कहते – “IAS बनने के लिए लाखों चाहिए, तेरे पास तो खाने को रोटी नहीं! वो मुस्कुराकर जवाब देता –IAS नोटों से नहीं… जुनून से बना जाता है। और सालों की तपस्या के बाद…जब रिज़ल्ट बोर्ड पर उसका नाम चमका,
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तो गाँव की वही गलियाँ, जो कभी उसका मज़ाक उड़ाती थीं…आज उसी के नाम से गूंज रही थीं।ये जीत सिर्फ़ मेरी नहीं… ये हर उस ग़रीब की जीत है, जो सपने देखने की हिम्मत रखता है।”गाँव की उस तंग गली में मिट्टी की महक हमेशा फैली रहती थी। छप्पर के नीचे बनी छोटी सी झोंपड़ी, टूटी चारपाई और दीवारों से झरती हुई मिट्टी – यही उसका घर था। बाहर बैलों की घंटियाँ बजतीं, तो अंदर उसकी माँ चूल्हे पर सूखी लकड़ियाँ जलाकर रोटी सेंकती।
उस रोटी में स्वाद से ज़्यादा भूख का बोझ होता। पिता दिनभर खेतों में पसीना बहाकर थका-हारा शरीर लेकर लौटते और कहते –बेटा, मेहनत से बड़ी दौलत कोई नहीं… बस हल चलाना सीख ले, ज़िंदगी कट जाएगी।लेकिन वो लड़का पिता की बात सुनकर खामोश नहीं रहता। उसकी आँखों में हमेशा कुछ और ही चमक होती। वो कहता –
अब्बा, अगर किस्मत ने खेतों में ही बाँध दिया होता, तो किताबें क्यों बनतीं? मैं पढ़ूँगा… और एक दिन अफ़सर बनूँगा।पिता उसकी बात सुनकर मुस्कुरा देते, लेकिन उनके दिल में डर था – कहीं ये ख्वाब बेटे को तोड़ न दें। गाँव वाले तो और भी ज़्यादा ताने कसते। चौपाल पर बैठे लोग हँसते और कहते –अरे, ये छोरा IAS बनेगा? इसकी औक़ात है? जो दूध के पैसे तक उधार में लाता है, वो अफ़सर बनेगा? ये तो मज़ाक है!”
उनकी हँसी गूँजती, मगर लड़के के कानों में वो हँसी ज़हर नहीं, आग बनकर उतरती। वो मन ही मन कहता –एक दिन ये ही लोग तालियाँ बजाएँगे, जब मेरे नाम के आगे ‘IAS’ लिखा जाएगा।उसका स्कूल गाँव से तीन कोस दूर था। रोज़ नंगे पाँव, धूल भरी पगडंडियों पर चलता हुआ, कभी बारिश में भीगता, कभी धूप में जलता, लेकिन हार नहीं मानता। रास्ते में अक्सर लोग रोककर कहते –
कहाँ जा रहा है छोरे? पढ़ाई से पेट भरता है क्या? चल, खेत में काम कर, मज़दूरी कर… यही तेरी असली जगह है।लेकिन वो मुस्कुराकर जवाब देता –आज पेट नहीं भर रहा, पर कल पूरे गाँव का नाम रोशन करूँगा।स्कूल में भी हालत आसान नहीं थे। कभी कॉपी नहीं होती, तो फटी पुरानी किताबों में नोट्स लिख लेता। कभी जूते नहीं होते, तो टूटी चप्पल से काम चला लेता। क्लास के बच्चे भी उसका मज़ाक उड़ाते –
तेरे पास पेंसिल तक नहीं, IAS कैसे बनेगा?वो बच्चों की हँसी पर सिर्फ़ इतना कहता –पेंसिल नहीं, हौसला चाहिए… और वो मेरे पास है।रात को घर लौटते ही उसे खेतों में पिता का हाथ बँटाना पड़ता। मिट्टी से सना शरीर, थकी हुई आँखें, लेकिन जैसे ही घर लौटकर लालटेन जलती, उसकी किताबें खुल जातीं। माँ कई बार कहती –बेटा, थक गया होगा… सो जा।”
वो सिर हिलाकर मुस्कुराता और कहता –अम्मा, नींद तो अमीरों के लिए है। ग़रीबों के पास सिर्फ़ मेहनत है, और वही मेरी ताक़त है।उसके चेहरे पर थकान होती, मगर आँखों में सपनों की चमक कभी कम नहीं हुई। गाँव के लोग उसे पागल कहते, हालात उसे मजबूर करते, लेकिन उसका दिल बार-बार फुसफुसाता –मंज़िल चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो… मैं वहाँ तक ज़रूर पहुँचूँगा।
Gaon Ka Ladka IAS Officer Bana गाँव से शहर की जद्दोजहद
गाँव की छोटी-सी दुनिया उसके बड़े सपनों को संभाल नहीं पा रही थी। उसने ठान लिया था कि आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना ही होगा। लेकिन घर की हालत इतनी ख़राब थी कि पिता ने सीधा कह दिया –बेटा, तेरे बाप ने भी खेतों में पसीना बहाकर ही ज़िंदगी काटी है, तू भी काट ले। शहर जाकर क्या करेगा? वहाँ पढ़ाई के लिए पैसे कहाँ से आएँगे?”
उसने आँखों में आँसू लिए पिता के हाथ थामे और बोला –अब्बा, अगर मेरी किस्मत भी इन खेतों में ही दफ़्न हो गई, तो मेरा सपना कभी जन्म ही क्यों लेता? मुझे जाने दो, चाहे भूख से लड़ना पड़े, चाहे दुनिया से… मैं हार नहीं मानूँगा।माँ ने बेटे की आँखों की चमक पढ़ ली थी। वो बोली –जा बेटा, मेरी दुआएँ तेरे साथ हैं।”
और इस तरह वो लड़का शहर पहुँचा।लेकिन शहर की ज़िंदगी वैसी नहीं थी जैसी उसने सपनों में सोची थी। एक गली में टपकती छत और सीलन से भरे छोटे-से कमरे में उसने डेरा डाला। कमरे में बिस्तर नहीं था, बस एक चटाई और सिरहाने पर रखी पुरानी किताबें।दिन में कॉलेज जाता और रात को मज़दूरी करता। कभी होटल में बर्तन माँजता, कभी ढाबे पर वेटर बन जाता, तो कभी मज़दूरी करके ईंट-पत्थर उठाता। जेब में पैसे कम होते, लेकिन सपनों की कीमत कभी कम नहीं होती।
लोग ताने मारते –अरे ये मज़दूर IAS बनेगा? इससे ज़्यादा तो रिक्शा खींचना इसके बस का है!वो जवाब देता –हाँ, मैं मज़दूर हूँ… मगर अपने सपनों का मज़दूर। और ये मज़दूरी ही मुझे अफ़सर बनाएगी।”कई बार भूख इतनी सताती कि पेट में चुभन होने लगती। कई रातें उसने पानी पीकर काटीं। लेकिन उन रातों में भी किताबें उसकी गोद में खुली रहतीं।
वो धीरे से पन्नों को सहलाता और कहता –भूख से शरीर टूट सकता है, लेकिन इरादे कभी नहीं टूटते।उसके पास लालटेन भी नहीं थी। ट्यूशन पढ़ाकर जुटाए पैसों से उसने एक छोटा बल्ब खरीदा। बिजली अक्सर चली जाती, मगर उसकी मेहनत नहीं रुकती। कभी अंधेरे में मोमबत्ती के नीचे बैठकर पढ़ता, तो कभी सड़क की लाइट के नीचे। राहगीर हँसते हुए कहते –
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“पागल है ये छोरा, रातों को सड़क पर किताबें पढ़ता है!वो मुस्कुराकर जवाब देता –हाँ, मैं पागल हूँ… अपने सपनों का। और यही पागलपन एक दिन मेरी पहचान बनेगा।लाइब्रेरी उसकी दूसरी दुनिया थी। वहाँ बैठकर वो घंटों किताबों में डूब जाता। जैसे हर पन्ना उसकी ज़िंदगी का नक्शा खींच रहा हो। कई बार थकान से आँखें बंद हो जातीं, लेकिन वो खुद को झकझोरकर कहता –
नींद तो अमीरों के लिए है। ग़रीब के पास सिर्फ़ मेहनत है।उसकी जद्दोजहद इतनी थी कि आसपास के लोग भी दंग रह जाते। उसके प्रोफेसर अक्सर कहते –इस लड़के में आग है। अगर इसे मौका मिला, तो ये सचमुच इतिहास लिख देगा।”और वो खुद से वादा करता –चाहे कितनी भी ठोकरें खाऊँ… लेकिन एक दिन इस ठोकर से ही सीढ़ी बनाऊँगा। और उस सीढ़ी पर चढ़कर IAS की कुर्सी तक पहुँचूँगा।”
इम्तिहानों की ठोकरें
शहर की गलियों से निकलकर अब उसकी आँखें सिर्फ़ एक ही मंज़िल पर टिकी थीं – UPSC का इम्तिहान।वो जानता था कि यह दुनिया का सबसे कठिन इम्तिहान है, लेकिन उसके लिए यह ज़िंदगी और मौत का सवाल था।सुबह पाँच बजे उठना, दिनभर कोचिंग की किताबों में डूब जाना, और रात को देर तक नोट्स बनाना – यही उसकी दिनचर्या बन चुकी थी। कई बार थककर वो सोचता – “क्या मैं सच में ये कर पाऊँगा?” लेकिन अगले ही पल आईने में खुद को देखता और कहता –
अगर मैं अभी हार गया, तो फिर मेरी पूरी मेहनत, मेरी माँ की दुआएँ और मेरे अब्बा का भरोसा सब मिट्टी हो जाएँगे।पहली बार जब उसने UPSC का पेपर दिया, तो नतीजे में उसका नाम कहीं नहीं था। दिल टूटा, आँखें नम हुईं। उसने माँ को फ़ोन किया और कहा –अम्मा… शायद ये ख़्वाब मेरे बस का नहीं।”
माँ ने रोते हुए जवाब दिया –बेटा, सपने तो वो होते हैं जो आसान नहीं होते। अगर पहला वार खाली गया है, तो दूसरा वार और मज़बूत करना।उसने आँसू पोंछे और फिर से किताबों में डूब गया। दूसरी बार भी नाकामी मिली। इस बार तो दोस्तों ने भी कहना शुरू कर दिया –छोड़ दे यार… तू ग़रीब है, तेरे लिए IAS नहीं बना। मज़दूरी कर, ज़िंदगी कट जाएगी।”
लेकिन उसने ठंडी साँस लेकर कहा –ज़िंदगी काटने के लिए नहीं मिली… इसे बनाने के लिए मिली है। और मैं इसे बनाकर दिखाऊँगा। उसके पास पढ़ने के लिए महँगी कोचिंग का सहारा नहीं था। जो दूसरों के पास नोट्स के ढेर थे, उसके पास बस लाइब्रेरी की पुरानी किताबें थीं। लेकिन वो उन किताबों को अपनी पूँजी मानता। हर पन्ने पर उसकी मेहनत के निशान होते – पसीने के धब्बे, टूटी पेंसिल की लिखावट, और कभी-कभी गिरी हुई नींद की बूंदें।
तीसरी बार जब रिज़ल्ट आया, तो उसके गाँव तक ख़बर पहुँची – “फिर फेल हो गया छोरा! चौपाल पर लोग हँसते हुए बोले –हमने कहा था न, IAS उसके बस का नहीं।लेकिन इस बार उसने ठान लिया –अब या तो अफ़सर बनूँगा… या कोशिश करते-करते गिर जाऊँगा। बीच का कोई रास्ता नहीं।उसने अपनी पढ़ाई को इबादत बना लिया। दिन-रात किताबों में डूबा रहता। खाने का होश नहीं, नींद की परवाह नहीं।
वो खुद से कहता – मेरे सपनों के दुश्मन हालात हैं… और हालात से लड़ने का सिर्फ़ एक हथियार है – मेहनत।”लोगों की हँसी अब उसे चोट नहीं पहुँचाती, बल्कि उसकी मेहनत का ईंधन बनती। वो सोचता –जिस दिन मेरा नाम लिस्ट में आएगा, उसी दिन ये सारी हँसी तालियों में बदल जाएगी।और इस बार उसका इरादा पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत था।
हार से हौसले तक
तीसरी बार का रिज़ल्ट आया… और स्क्रीन पर उसका नाम नहीं था।उसने अपनी आँखों को बार-बार मलकर देखा, लेकिन नतीजा वही था – असफल।इस बार उसके सीने में कुछ टूटकर बिखर गया।कमरे की दीवारों पर चिपके नोट्स, मेहनत से बने चार्ट और अधूरी कॉपियाँ उसे ताना देने लगीं।
वो बिस्तर पर सिर पकड़कर बैठा और बुदबुदाया –शायद सच ही कहते हैं लोग… ये ख्व़ाब मेरे बस का नहीं।आँखों से बहते आँसू ने किताबों को भिगो दिया। घंटों वो उसी हालत में बैठा रहा।फिर अचानक माँ की याद आई।वो बोला – “चलो, घर चलें… माँ के आँगन में शायद सुकून मिलेगा।गाँव पहुँचा तो चौपाल पर हलचल मची थी। किसी ने दूर से ही आवाज़ लगाई –
अरे, देखो… शहर से लौटा हुआ छोरा आ गया! तीसरी बार भी फेल हो गया।और फिर ठहाकों की गूंज ने उसका स्वागत किया।एक बुज़ुर्ग ने ताना कसते हुए कहा –बेटा, सपनों से पेट नहीं भरता। खेत जोत, यही तेरी असली जगह है।उसकी आँखें भर आईं, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।बस चुपचाप घर पहुँचा।माँ दरवाज़े पर खड़ी थी।जैसे ही उसने बेटे के आँसू देखे, उसने पूछा –क्या हुआ बेटा? फिर…?उसने सिर झुका लिया और धीरे से कहा –
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अम्मा… शायद मैं तुम्हारी उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाया। तीन-तीन बार कोशिश की… लेकिन नतीजा वही। अब हार मान लेता हूँ।माँ ने उसके काँपते हाथों को थामा और आँसू पोंछते हुए बोली –बेटा, हार वो मानते हैं जो सपने अधूरे छोड़ देते हैं। तू तो वही है, जिसने हमें हमेशा सिखाया कि हार मानना ग़रीब का काम नहीं। अगर तेरी कोशिशें असली हैं, तो एक दिन खुदा तुझे मंज़िल देगा।उसकी आँखों में चमक लौटी।
वो सोचने लगा – “ये लड़ाई सिर्फ़ मेरी नहीं… ये मेरी माँ की दुआओं और मेरे अब्बा के पसीने की लड़ाई है।रात को उसने चौपाल पर सबके सामने कहा –सुन लो सब लोग! मैं मानता हूँ कि तीन बार गिरा हूँ। लेकिन गिरकर उठना ही इंसानियत है। चौथी बार मैं लौटूँगा… और तब ये हँसी तालियों में बदलेगी।गाँव का माहौल बदल गया। कोई चुपके से उसकी पीठ थपथपाने लगा, तो कोई अब भी ताने कस रहा था।
लेकिन उसके दिल में अब एक नई आग जल चुकी थी।उसने खुद से वादा किया –अब ये आख़िरी जंग होगी। या तो अफ़सर बनूँगा… या कोशिश करते-करते मिट जाऊँगा। बीच का कोई रास्ता नहीं।गाँव की गलियों से निकलते हुए उसने माँ का हाथ थामा और बोला –अम्मा, अगली बार लौटूँगा… तो तेरे आँसू खुशी के होंगे।”
जीत और गाँव की शान
चौथी बार का इम्तिहान… उसके लिए आख़िरी जंग थी।
हर सुबह सूरज उगने से पहले वो आईने में खुद को देखता और कहता –अगर इस बार हार गया… तो मेरी माँ की उम्मीदें, अब्बा का पसीना और मेरी सारी मेहनत मिट्टी में मिल जाएगी। लेकिन अगर जीत गया… तो यही जीत लाखों ग़रीबों का रास्ता रोशन करेगी।”
उसके दिन और रात एक हो चुके थे। किताबें उसके हथियार थीं, और कमरे की चारदीवारी उसका रणक्षेत्र।
भूख उसे रोकती नहीं थी, नींद उसे झुकाती नहीं थी।
कभी हाथ काँपते, तो वो खुद को थप्पड़ मारकर कहता –
“उठ! यह आख़िरी लड़ाई है। यहाँ रुक गया, तो पूरी ज़िंदगी रुक जाएगी।”
परीक्षा का दिन आया।केंद्र पर भीड़ थी, लेकिन उसके दिल में अजीब-सी शांति थी।उसने माँ की तस्वीर जेब से निकाली, माथे से लगाई और फुसफुसाया –अम्मा, आज तुम्हारा बेटा हारकर नहीं लौटेगा।”पेपर लिखते हुए उसकी आँखों के सामने उसके संघर्ष के सारे लम्हे तैर गए – खेतों में छाले पड़े हाथ, लालटेन के नीचे टिमटिमाती पढ़ाई, चौपाल के ताने, और माँ की आँसुओं से भीगी दुआएँ।
हर जवाब उसके दिल की गहराई से निकल रहा था।फिर आया रिज़ल्ट का दिन।कंप्यूटर स्क्रीन पर काँपते हाथों से उसने एंटर दबाया… और अगले ही पल उसकी आँखें भर आईं।उसका नाम… चयनित उम्मीदवारों की सूची में था।वो कुर्सी से गिरते-गिरते बचा।दोनों हाथ आसमान की ओर उठाए और फूट-फूटकर रोते हुए कहा –माँ… तेरे बेटे ने कर दिखाया! आज तेरे सपने पूरे हुए।”
गाँव में ख़बर पहुँची तो जश्न का माहौल बन गया।ढोल-नगाड़े बजे, बच्चे फूल बरसाने लगे, और चौपाल जहाँ कभी ताने गूंजते थे, अब तालियों से थर्रा रहा था।कुछ महीनों बाद जब वो ट्रेनिंग पूरी करके पहली बार अफ़सर की गाड़ी में अपने गांव जा रहा था तो गाँव की वही तंग गलियाँ, वही टूटी झोपड़ियाँ, और वही धूल भरी पगडंडी थी… लेकिन आज मंज़र बिल्कुल अलग था। दूर से आती जीप पर जब “District Magistrate” का बोर्ड चमका तो पूरा गाँव सन्न रह गया। लोग समझ ही नहीं पाए कि ये जीप गाँव की मिट्टी पर क्यों रुकी है। और जैसे ही दरवाज़ा खुला, सफ़ेद वर्दी में सजीला नौजवान बाहर निकला, तो सबकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
वो कोई और नहीं… बल्कि वही लड़का था, जिसने कभी भूख को सहा था, फटे कपड़ों में खेतों में काम किया था, और अँधेरे में लालटेन की रोशनी में पढ़ाई की थी। आज वो गाँव का पहला IAS अफ़सर बनकर लौटा था।गाँव वाले दौड़कर उसके चारों तरफ़ जमा हो गए। कोई अविश्वास में आँखें मल रहा था, कोई खुशी से झूम रहा था। उसकी माँ काँपते हाथों से उसके कंधे को छूकर बोली —
“बेटा, क्या तू वाक़ई वही है? जिसने मेरी गोद में भूख से आँसू बहाए थे?उसकी आँखें छलक आईं। उसने झुककर माँ के पाँव छुए और धीमे से कहा —“अम्मी, मैं वही हूँ तेरा बेटा… लेकिन आज सिर्फ आपका बेटा नहीं, बल्कि इस पूरे गाँव का बेटा हूँ। जो आपके आशीर्वाद और मेहनत की बदौलत इस मुक़ाम तक पहुँचा है।”
उसके शब्दों ने पूरे गाँव को सन्न कर दिया। बूढ़े-बुज़ुर्गों की आँखों से आँसू बहने लगे। बच्चे उसके चारों ओर खड़े होकर पूछने लगे — “भैया, IAS कैसे बनते हैं? हम भी आपके जैसे बनना चाहते हैं।”वो मुस्कुराया, और गहरी आवाज़ में बोला —IAS बनने का रास्ता आसान नहीं होता। लेकिन अगर किताब तुम्हारी साथी है, मेहनत तुम्हारी आदत है, और माँ-बाप की दुआ तुम्हारी ढाल है, तो कोई ताक़त तुम्हें रोक नहीं सकती।”
उसके ये अल्फ़ाज़ जैसे गाँव के हर दिल में बिजली की तरह उतर गए। आज न सिर्फ़ उसकी माँ की आँखें चमक रही थीं, बल्कि पूरा गाँव गर्व से भर गया था। वो बच्चा, जिसे कभी गरीबी ने रुलाया था, आज उसी गरीबी की तस्वीर मिटाकर उम्मीद का झंडा गाड़ चुका था।
उसने आसमान की तरफ़ देखा और हाथ जोड़कर बोला —“मैं यहाँ तक अकेला नहीं पहुँचा… ये जीत इस मिट्टी की है, इस गाँव की है। आज मेरी पहचान सिर्फ IAS नहीं… बल्कि इस गाँव की आवाज़ है।”गाँव की शाम उस दिन सितारों से भी ज़्यादा जगमगा रही थी। और उस इतिहास में एक नया पन्ना जुड़ गया था।