Gharibi se karodpati mehnat ki asli taqat

Gharibi se karodpati tak mehnat ki asli taqat sapno ka yudh

Gharibi se karodpati tak mehnat ki asli taqat

ज़िंदगी कभी-कभी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहाँ दो ही रास्ते होते हैं — या तो हार मान लो, या फिर लड़ाई करो। इस कहानी की शुरुआत भी एक ऐसे ही मोड़ से होती है।अंधेरी रात थी। हवा में मिट्टी और धुएँ की गंध घुली हुई थी। झोपड़ी की टूटी दीवारें मानो कह रही थीं कि यहाँ सिर्फ़ गरीबी का राज है। उसी झोपड़ी में एक लड़का बैठा था, जिसकी आँखों में नींद नहीं, बल्कि सवाल तैर रहे थे।

वो खुद से बुदबुदा रहा था —क्या मेरी ज़िंदगी भी ऐसे ही खत्म हो जाएगी? मज़दूरी, ताने, भूख… और फिर एक दिन गुमनाम मौत? उसकी माँ ने पास आकर उसे देखा और पूछा क्या सोच रहा है बेटा?लड़के ने धीमे स्वर में कहा _अम्मा, अगर इंसान का सपना उसकी औक़ात से बड़ा हो तो क्या वो ख्वाब देखना गुनाह है?”

माँ मुस्कुराई, मगर आँखों में नमी थी। बोलीं —गुनाह नहीं बेटा, लेकिन ऐसे सपनों को पूरा करने के लिए इंसान को अपने खून से ज़मीन सींचनी पड़ती है। ये आसान नहीं होता।बाहर से किसी पड़ोसी की आवाज़ आई —अरे देखो! ये लड़का करोड़पति बनेगा? पहले दो वक्त की रोटी तो जुटा ले।यह ताना दिल में चुभ गया। मगर लड़के की आँखें और चमक उठीं। उसने ठान लिया कि ये ताने ही उसकी ताक़त बनेंगे।

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उसने आसमान की तरफ देखा और बुदबुदाया —अगर मेहनत को हकीकत का नाम मिलता है, तो एक दिन यही लोग मुझे देखकर कहेंगे — यही है वो लड़का, जिसने गरीबी से जंग जीतकर अपनी तक़दीर बदली।”यही था उस सफ़र का पहला कदम। एक सफ़र, जिसमें भूख थी, ताने थे, आँसू थे… लेकिन सबसे ज़्यादा था — मेहनत का जुनून और सपनों की आग।

Gharibi se karodpati tak mehnat ki asli taqat ताने और ठोकरें 

Gharibi se karodpati tak mehnat ki asli taqat

दूसरे दिन जब वह सो कर उठा तो देखा झोपड़ी के बाहर कुछ बच्चे खेल रहे थे, जिनके हाथ में रंग-बिरंगी गेंदें थीं, लेकिन इस लड़के के हिस्से में बस एक पुरानी किताब थी, जिसके पन्ने आधे फटे हुए थे।वो किताब खोलकर बैठा ही था कि पड़ोस का रमज़ान चाचा आ गए। हँसते हुए बोले —

“ओए, किताबों से पेट भर जाएगा क्या? चलो मज़दूरी करो, कुछ कमा लो। तुम्हारे बाप ने भी पूरी ज़िंदगी खून-पसीना बहाया, फिर भी जेब खाली ही रही।लड़के के दिल पर चोट लगी, मगर उसने सिर झुकाकर धीमे से कहा —चाचा, आज मैं मज़दूरी करूँगा… लेकिन कल एक दिन ऐसा आएगा जब मेरी मेहनत से पूरी दुनिया मुझे पहचानेगी।”

रमज़ान चाचा ने ठहाका लगाया —हाहा! सपने देखो बेटे, मगर भूखे पेट सपने पूरे नहीं होते।लड़के ने किताब को सीने से लगाया और बुदबुदाया —भूखा पेट ही तो मुझे मज़बूर करता है कि मैं कुछ बड़ा करूँ। अगर हालात आसान होते, तो शायद सपने भी इतने बड़े न होते।उसी वक्त उसकी माँ बाहर आईं और बोलीं —बेटा, तानों का जवाब देना आसान है, लेकिन असली जवाब वक्त देगा। अभी चुपचाप मेहनत करो।”

उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन होंठों पर सख़्त इरादा। उसने माँ का हाथ पकड़ा और कहा —अम्मा, एक दिन मैं आपको ऐसी ज़िंदगी दूँगा जहाँ ये झोपड़ी, ये ताने और ये भूख सब बीते वक्त की बातें होंगी।”वो दिनभर ईंटें ढोता, मजदूरी करता, और रात को उसी टूटी-फूटी किताब को पढ़ता। उसकी उंगलियाँ छिल जातीं, पीठ दर्द से झुक जाती, मगर दिल में एक ही आवाज़ गूँजती —

“मेहनत करने वालों की हार नहीं होती।”

लेकिन ये सफ़र आसान नहीं था। हर क़दम पर मज़ाक उड़ाया जाता, हर कोशिश पर शक किया जाता। कई बार तो हालात इतने खराब हो जाते कि दो वक्त की रोटी भी मुश्किल लगती। मगर वो लड़का हार मानना जानता ही नहीं था।

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एक रात उसने अपने अब्बा से कहा —अब्बा, आप कहते थे सपनों को पूरा करने के लिए आँसू और पसीना चाहिए। मैं तैयार हूँ… बस मुझे इजाज़त दीजिए कि मैं अपने हिसाब से मेहनत करूं ।अब्बा ने गहरी साँस ली और उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा —जा बेटा, अगर तेरे इरादे सच्चे हैं तो तुझे कोई रोक नहीं सकता। लेकिन याद रखना — ये राह काँटों से भरी होगी।”

उस रात लड़के ने कसम खाई —मैं इस दुनिया को साबित करूँगा कि गरीब का बेटा भी अपनी मेहनत से करोड़पति बन सकता है।”

पहला इम्तिहान

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दिन बीतते गए। लड़का दिन में मजदूरी करता और रात को पढ़ाई। उसके पास न ट्यूशन थी, न अच्छे कपड़े, न आराम करने का वक्त। लेकिन उसकी आँखों में जो आग जल रही थी, वो किसी दौलतमंद के महल से भी ज़्यादा चमकदार थी।एक दिन गाँव के स्कूल में इम्तिहान का नतीजा आया। लड़का सबसे ऊपर था। टीचर ने हैरानी से कहा —

“तुम्हारे पास किताबें भी नहीं, न कॉपी, न पेन… फिर भी तुम सबको पीछे छोड़ आए? ये कैसे हुआ?लड़का मुस्कुराया और बोला —सपनों की ताक़त किताबों से बड़ी होती है सर। मैंने हर शब्द को दिल से पढ़ा है।”गाँव के लोग सुनकर हँस पड़े। कोई बोला —अरे! ये पढ़-लिखकर क्या करेगा? आखिरकार इसे तो मज़दूरी ही करनी है।”मगर लड़के ने मन ही मन कहा —इन्हीं लोगों को साबित करना है। यही मेरी सबसे बड़ी लड़ाई है।”

वो पढ़ाई के साथ-साथ छोटे-छोटे काम करने लगा — किसी की दुकान पर सामान पहुँचाना, खेतों में काम करना, कभी किसी चाय की दुकान पर बर्तन धोना। जो भी पैसा मिलता, उससे वह पुरानी किताबें खरीदता। कई बार भूखा सो जाता, लेकिन किताबों का पन्ना कभी बंद नहीं करता।उसकी माँ अक्सर कहतीं —

“बेटा, ज़िंदगी इतनी आसान नहीं है। मेहनत ज़रूरी है, लेकिन अपने तन-मन का भी ख्याल रखना।वो हँसकर जवाब देता अम्मा, जब तक सपने पूरे नहीं होते, तब तक आराम का हक़ नहीं है।”धीरे-धीरे उसने छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। गाँव के लोग हैरान थे — “जिसे कल तक सब मज़दूर समझते थे, आज वही दूसरों को पढ़ा रहा है?”

लेकिन यही उसका पहला इम्तिहान था। जिन बच्चों को उसने पढ़ाया, उन्होंने अच्छे नतीजे लाए। माता-पिता खुश हुए और धीरे-धीरे लड़के को पढ़ाने के पैसे मिलने लगे। यह उसकी ज़िंदगी की पहली कमाई थी, जो उसने अपनी मेहनत और ज्ञान से हासिल की थी।उस दिन जब उसने माँ के हाथ में वो कुछ रुपये रखे, तो माँ की आँखों से आँसू झर-झर गिरने लगे। माँ ने कहा —बेटा, ये पैसे सोने से भी कीमती हैं। क्योंकि इसमें तुम्हारी मेहनत की खुशबू है।”

लड़के ने माँ का हाथ पकड़कर कहा —अम्मा, ये तो बस शुरुआत है। एक दिन यही मेहनत हमें गरीबी से निकालकर इज़्ज़त और दौलत की बुलंदियों पर ले जाएगी।”लेकिन उसे अंदाज़ा नहीं था कि यह राह और भी कठिन होने वाली है। क्योंकि अगले ही दिन गाँव का एक अमीर ज़मींदार उससे बोला —ओ लड़के! अपने सपनों के पीछे भागना छोड़, वरना भूख और गरीबी तुझे तोड़कर रख देगी। सपनों से पेट नहीं भरता।”

लड़के ने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा —सपनों से पेट नहीं भरता, लेकिन सपनों के लिए भूख सहना आसान हो जाता है। और एक दिन यही सपने पेट भी भरेंगे और दुनिया को भी चौंकाएँगे।

मेहनत का सौदा

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गाँव के ज़मींदार की बात उसके कानों में गूँज रही थी, मगर उसके दिल ने हार मानने से इंकार कर दिया। वह सोच रहा था — “अगर मैं भी इनकी तरह डरकर बैठ गया, तो मेरी मेहनत और सपने दोनों बेकार हो जाएँगे। मुझे रास्ता खुद ही बनाना होगा।”

दिन गुजरते गए। लड़का बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ, बाज़ार में जाकर छोटे-मोटे काम भी करने लगा। कभी किसी की दुकान संभालता, कभी सब्ज़ियाँ बेचता। पैसे धीरे-धीरे जमा होने लगे। उसने तय कर लिया कि इन पैसों से वो कुछ ऐसा करेगा जो उसकी ज़िंदगी बदल दे।एक दिन उसने शहर जाने का फ़ैसला किया। माँ ने हैरानी से पूछा —बेटा, शहर में क्या करेगा? हमारे पास तो इतना पैसा भी नहीं है कि तेरा गुज़ारा हो सके।”लड़का मुस्कुराया और बोला —

“अम्मा, यही तो मेरा इम्तिहान है। अगर मैं डर गया तो हमेशा यहाँ का ही रह जाऊँगा। मुझे आगे बढ़ना है, चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न आए।”अब्बा ने गहरी साँस ली और कहा —जा बेटा, मगर याद रखना… शहर की भीड़ इंसान को निगल जाती है। वहाँ हर कोई अपना फायदा सोचता है। लेकिन अगर तूने हिम्मत नहीं हारी, तो तुझे कोई नहीं रोक पाएगा।”

शहर पहुँचते ही उसने देखा, वहाँ हर तरफ़ दौड़-भाग है, ऊँची इमारतें हैं, बड़े-बड़े दुकानें हैं। उसे अपनी गरीबी और साफ़ नज़र आने लगी। लेकिन उसने मन ही मन कहा —गरीबी मेरी मजबूरी है, लेकिन यही मुझे मेहनत करना सिखा रही है। एक दिन मैं भी इन इमारतों जैसा मज़बूत बनूँगा।”

शहर में उसे पहला काम मिला – एक चाय की दुकान पर बर्तन धोने का। मालिक ने कहा —अगर काम करोगे तो खाना और थोड़ा पैसा मिलेगा, वरना निकल जाओ।लड़के ने सिर झुकाकर कहा —काम मेरे लिए बोझ नहीं है। मैं हर मेहनत करने को तैयार हूँ।वो दिनभर बर्तन धोता और रात को दुकान के कोने में बैठकर पुरानी किताब पढ़ता। कई बार थककर आँखें बंद हो जातीं, मगर दिल की आवाज़ उसे जगा देती — “रुकना मत। तेरी मंज़िल अभी दूर है।”

धीरे-धीरे दुकान पर आने वाले लोग उसे पहचानने लगे। कुछ ग्राहक उससे बातें करते। एक दिन एक सज्जन ने उससे पूछा तुम्हारी आँखों में मजदूरी करने वाले की थकान नहीं, बल्कि सपनों की चमक है। बताओ बेटे, तुम असल में क्या करना चाहते हो?लड़के ने आत्मविश्वास से जवाब दिया —साहब, मैं करोड़पति बनना चाहता हूँ। ताकि मेरे माँ-बाप का सिर ऊँचा हो और गरीबी हमारे घर की दीवार से हमेशा के लिए मिट जाए।”

उस सज्जन ने गहरी नज़र से उसकी ओर देखा और कहा —अगर तेरे इरादे इतने सच्चे हैं, तो मैं तुझे एक मौक़ा दूँगा। पर याद रखना, ये मौक़ा ज़िंदगी बदल भी सकता है और तुझे तोड़ भी सकता है।”यह सुन कर वह समझ गया कि उसकी मेहनत अब उसे एक नए मोड़ पर ले जा रही है।

सपनों की जीत 

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सज्जन की बात सुनकर लड़के की धड़कनें तेज़ थीं। उसने सिर झुकाकर कहा —साहब, मैं हर इम्तिहान के लिए तैयार हूँ। बस मुझे मौका चाहिए।सज्जन ने उसे अपने साथ एक छोटी-सी दुकान पर काम करने भेजा। वहाँ लड़के ने सीखा कि सामान कैसे खरीदा जाता है, कैसे बेचा जाता है, और ग्राहक को कैसे संभाला जाता है। वह हर बात को ग़ौर से देखता, हर छोटे से छोटा हुनर सीखता।

दिन गुज़रते गए। कुछ ही महीनों में, लड़का इतना होशियार हो गया कि दुकान के मालिक भी हैरान रह जाते। एक दिन मालिक ने कहा —तुम्हारी समझदारी ने मेरी दुकान को नई जान दे दी है। अगर ऐसे ही मेहनत करते रहे तो एक दिन अपनी दुकान जरूर खोलोगे।लड़के ने मुस्कुराकर जवाब दिया —

साहब, मेरा ख्वाब दुकान से भी बड़ा है। मैं चाहता हूँ कि मेरी मेहनत से मेरा गाँव, मेरे माँ-बाप और हर गरीब इंसान को यक़ीन हो जाए कि सपने पूरे हो सकते हैं।कुछ सालों तक उसने लगातार काम किया, पैसे बचाए, और छोटे-मोटे धंधे शुरू किए। कभी सब्ज़ी बेचता, कभी छोटे स्टॉल लगाता। कई बार घाटा भी हुआ, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वो खुद से कहता —

सपने देखने वालों की हार तब होती है जब वो रुक जाते हैं। और मैं कभी रुकूँगा नहीं।धीरे-धीरे उसके छोटे-छोटे धंधे सफल होने लगे। उसने एक किराने की दुकान खोली, फिर थोक का काम शुरू किया। हर कमाई को वो आगे निवेश करता। लोगों ने उसे पागल कहा —

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इतना छोटा है, इतना बड़ा सोच रहा है? ये बर्बाद हो जाएगा।लेकिन लड़के ने सबकी बातें अनसुनी कर दीं। उसकी मेहनत और ईमानदारी ने धीरे-धीरे उसे कामयाब बना दिया।कुछ ही सालों में उसके पास खुद का घर, गाड़ियाँ और बड़ा व्यापार था। जब वह पहली बार अपने गाँव लौटा, तो वही लोग जो ताने कसते थे, अब उसके स्वागत में खड़े थे। रमज़ान चाचा, जो हमेशा मज़ाक उड़ाते थे, झिझकते हुए बोले —

बेटा, हमें माफ़ कर देना। हमने तुझे कभी सीरियस नहीं लिया। लेकिन आज तूने साबित कर दिया कि मेहनत सच में इंसान को ऊपर उठाती है।लड़के ने मुस्कुराकर कहा —चाचा, ताने और मज़ाक ही तो मेरी ताक़त बने। अगर आप सबने मुझे चुभते शब्द न दिए होते, तो शायद मैं इतना मेहनत भी न करता।”

सबसे भावुक लम्हा तब आया, जब उसने अपनी माँ के हाथ में करोड़ों की कमाई से खरीदा हुआ घर की चाबी रखी और कहा —“अम्मा, अब ये झोपड़ी पीछे छूट गई। ये नया घर आपकी दुआओं का तोहफ़ा है।”माँ की आँखों से आँसू बह निकले।वह बहते हुए आँसू सिर्फ़ ख़ुशी के नहीं थे, बल्कि उन तमाम दर्दों का जवाब थे, जो उन्होंने सालों तक छुपा कर रखे थे। लड़के ने उनके हाथ पकड़कर कहा —

“अम्मा, अब कोई रात भूख से नहीं गुज़रेगी, अब कोई सपना अधूरा नहीं रहेगा। आज आपकी दुआओं ने मुझे करोड़पति नहीं, बल्कि इंसानियत का सच्चा अमीर बना दिया है।भीड़ तालियाँ बजा रही थी, लेकिन लड़के के कानों में सिर्फ़ माँ की धड़कनें गूँज रही थीं। वही धड़कनें, जो कभी भूख से कांपती थीं और आज फ़ख़्र से भरी हुई थीं।उसने आसमान की तरफ़ देखा और फुसफुसाया — “ग़रीबी ने मुझे गिराने की कोशिश की थी, लेकिन मेहनत ने मुझे उड़ना सिखा दिया।”और यूँ, एक गरीब लड़का जो कभी दूसरों की दया पर जिया करता था, आज लाखों के लिए उम्मीद की मिसाल बन चुका था।

इसी लिए तो कहते हैं कि आपकी असली जीत तब होती है… जब आपकी मेहनत सिर्फ़ आपको नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को बदल दे।आज वो लड़का करोड़पति है। लेकिन उसके लिए असली दौलत पैसे नहीं, बल्कि वो इज़्ज़त है जो उसने मेहनत से कमाई। उसकी कहानी इस बात का सबूत है कि —गरीबी इंसान को तोड़ती नहीं, बल्कि उसे इतना मज़बूत बनाती है कि वो पूरी दुनिया को बदल सके।

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