Pairon ke Bina udan

Pairon ke Bina udan हौसले की ऐसी कहानी जो रुला दे 

Pairon ke Bina udan

रात का सन्नाटा था… कमरे की दीवारों पर चिपके पुराने कैलेंडर की तारीख़ें मानो रुक सी गई थीं। बाहर सड़क पर लोगों के कदमों की आहट थी, मगर अंदर इस छोटे से कमरे में एक ऐसा शख़्स बैठा था जिसके पास कदम ही नहीं थे। लेकिन हौसला… वो इतना ऊँचा था कि आसमान भी उसके सामने झुकने को मजबूर था। उसका नाम आरव था — एक ऐसा लड़का, जो बचपन में ही ज़िंदगी की सबसे बड़ी ठोकर खा चुका था, मगर हार नहीं मानी।

सात साल की उम्र में हुए एक हादसे ने उसके दोनों पैर छीन लिए। गाँव की बस ने मोड़ पर अचानक ब्रेक लिया, और ज़िंदगी पल भर में बदल गई। उस दिन से आरव ने ज़मीन पर चलना छोड़ दिया, लेकिन आसमान छूने की कसम खा ली। घरवाले टूट गए, माँ रोती रही, पिता की आँखों में शर्म और लाचारी का साया उतर आया। मोहल्ले वाले ताने मारते — “अब ये क्या कर पाएगा?” “बेचारा ज़िंदगी भर दूसरों पर निर्भर रहेगा।”
लेकिन आरव के भीतर कोई ज्वाला थी — जो बुझने को तैयार नहीं थी।

वो दिन याद है जब पहली बार उसने अपने हाथों से कीबोर्ड छुआ था। पुराना, टूटा हुआ कीबोर्ड, जो किसी पड़ोसी ने फेंक दिया था। किसी ने कहा — “तेरे जैसे लोग तो दूसरों पर बोझ होते हैं,” तो आरव ने उसी रात फैसला किया — “अब ये हाथ मेरी दुनिया बदलेंगे।” उसने पैर खोए थे, लेकिन उंगलियों में भरोसा पा लिया था। रोज़ रात को बिजली जाने के बाद वो टॉर्च की रोशनी में बैठकर टाइपिंग का अभ्यास करता, गलती पर खुद को कोसता, फिर दोबारा कोशिश करता। उंगलियों में दर्द होता, तो वो तकिये पर सिर रखकर रोता — मगर सुबह फिर वही मुस्कान लेकर टेबल पर लौट आता।

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माँ अक्सर कहती थी, “बेटा, अब छोड़ दे, तेरा शरीर थक गया है।” और वो कहता, “अम्मी, शरीर थक सकता है… पर ख्वाब नहीं।”
गाँव में कंप्यूटर सेंटर नहीं था, इसलिए उसने खुद इंटरनेट से सीखना शुरू किया। पुराने मोबाइल पर यूट्यूब के वीडियो देखकर कीबोर्ड लेआउट याद किया, हर शॉर्टकट रट लिया। कई बार स्क्रीन फ्रीज़ हो जाती, लेकिन वो रुकता नहीं। धीरे-धीरे उसकी टाइपिंग की स्पीड बढ़ी — पहले एक लाइन, फिर एक पैराग्राफ, फिर पूरा पेज।

जब पहली बार उसने खुद का टाइप किया हुआ लेटर प्रिंट किया, तो उसकी आँखों में आँसू थे। वो आँसू हार के नहीं — उड़ान के थे।
वो उड़ान जो पैरों से नहीं, इरादों से भरी थी।
वो उड़ान जिसने सिखाया कि दिव्यांगता शरीर में नहीं होती, सोच में होती है।

आरव अब भी उस पुराने कमरे में था, मगर अब वो “बेचारा लड़का” नहीं रहा था। वो अब एक योद्धा था — जो कीबोर्ड के हर बटन में अपना नाम लिख रहा था।

Pairon ke Bina udan  संघर्ष की उस राह

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दिन गुज़रते गए, और आरव की उंगलियाँ अब कंप्यूटर की चाबियों पर वैसे ही नाचने लगीं जैसे कोई संगीतकार अपनी धुन पर। लेकिन ज़िंदगी सिर्फ मेहनत से नहीं चलती — उसे पहचान चाहिए, मौके चाहिए, और सबसे बढ़कर हिम्मत चाहिए समाज के सवालों का जवाब देने की।जब आरव ने पहली बार सरकारी नौकरी के आवेदन का फॉर्म देखा, तो दिल धड़क उठा। फॉर्म में लिखा था — “Persons with Disability (PWD)”उसने वो कॉलम भरा, और खुद से कहा — “हाँ, मैं दिव्यांग हूँ… लेकिन मैं असमर्थ नहीं।”

वो दिन–रात तैयारी में जुट गया। टाइपिंग टेस्ट उसकी जान बन गया था। सुबह की ठंडी हवा में जब गाँव के लड़के दौड़ने निकलते, तो आरव अपने कमरे में बैठकर कीबोर्ड पर “A–S–D–F, J–K–L–;” दोहराता रहता। उसके लिए यही morning practice थी।लेकिन रास्ता आसान नहीं था। कई बार इंटरव्यू बोर्ड में उसे देखकर लोग मुस्कुरा देते — “बेटा, ये काम तो सामान्य लोगों के लिए भी मुश्किल है, तू कैसे करेगा?”और आरव बस एक लाइन कहता, “सर, मैंने ज़िंदगी बिना पैरों के चलाई है, ये नौकरी क्या चीज़ है।”

पहले दो प्रयासों में वो असफल रहा। एक बार टाइपिंग टेस्ट में सिस्टम हैंग हो गया, दूसरी बार फॉर्म में गलती के कारण उसका आवेदन रिजेक्ट हो गया। वो टूटा, मगर बिखरा नहीं।उस रात उसने आईने के सामने खड़े होकर खुद से कहा — “आरव, तू चल नहीं सकता, लेकिन तेरी मेहनत दौड़ सकती है।”और फिर वही हुआ — तीसरे प्रयास में, उसने न सिर्फ टाइपिंग टेस्ट पास किया बल्कि स्पीड में बाकी सभी सामान्य उम्मीदवारों को पीछे छोड़ दिया। 80 शब्द प्रति मिनट की उसकी टाइपिंग स्पीड देखकर परीक्षक तक हैरान रह गए।

जब रिजल्ट आया, आरव के नाम के आगे लिखा था — “Selected – Clerk (Government Office)”उसने वो कागज़ उठाया, और माँ के हाथ में थमाया। माँ की आँखों में आँसू थे, लेकिन इस बार वो दर्द के नहीं — गर्व के आँसू थे।वो माँ जो कभी सोचती थी कि उसका बेटा ज़िंदगी भर दूसरों पर निर्भर रहेगा, आज उसी के बेटे के नाम पर गाँव में बधाइयाँ दी जा रही थीं।आरव अब व्हीलचेयर पर था, मगर उसके हौसले आसमान को छू रहे थे। जिस कीबोर्ड ने उसके सपने लिखे, अब वही उसकी रोज़ी-रोटी बन गया।

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सरकारी दफ़्तर में जब वो बैठकर काम करता, तो लोग कहते  “इस लड़के ने तो ज़िंदगी को हराकर जीत ली।”वो अब हर दिव्यांग बच्चे के लिए मिसाल था। स्कूलों में बुलाया जाता, ताकि वो बच्चों से कह सके — “जिसे भगवान ने पैर नहीं दिए, उसे उड़ने के लिए पर दिए हैं। बस खुद पर भरोसा रखो।”

आरव की कहानी वहीं खत्म नहीं हुई थी, वो अब भी दूसरों को उड़ान देना चाहता था — क्योंकि उसके लिए सफलता का मतलब सिर्फ नौकरी पाना नहीं था, बल्कि दूसरों को यक़ीन दिलाना था कि हिम्मत कभी विकलांग नहीं होती।

जब हौसला बना उम्मीद की मशाल

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सरकारी दफ़्तर की सुबहें अब आरव के लिए किसी नयी शुरुआत की तरह होतीं। जब बाकी लोग अपनी बाइक या स्कूटर से आते, आरव अपनी व्हीलचेयर पर मुस्कुराते हुए भीतर दाखिल होता। वो मुस्कान किसी दिखावे की नहीं थी  वो एक जवाब थी उन सभी निगाहों के लिए जिन्होंने कभी कहा था, “ये कुछ नहीं कर पाएगा।”फ़ाइलों के बीच झुका उसका चेहरा, स्क्रीन पर टाइप करती उंगलियाँ, और होंठों पर हल्की सी तसल्ली — यही उसकी दुनिया थी। धीरे-धीरे दफ़्तर के लोग समझने लगे कि ये लड़का सिर्फ दिव्यांग नहीं, बल्कि “अद्भुत” है।

एक दिन उसके बॉस ने कहा, “आरव, तेरी टाइपिंग इतनी तेज़ है कि बाकी स्टाफ पीछे रह जाता है।”वो बस मुस्कुरा कर बोला, “सर, मेरे पैरों ने मुझे चलना सिखाया नहीं… इसीलिए हाथों ने उड़ना सीख लिया।”उस दिन पहली बार किसी ने उसे तरस भरी निगाह से नहीं देखा, बल्कि सम्मान से देखा।लेकिन आरव का सफ़र सिर्फ नौकरी तक सीमित नहीं था।

एक दिन जब वो ऑफिस से लौट रहा था, सड़क किनारे उसने एक छोटे लड़के को देखा — बिना एक पैर के, टूटी हुई तख्ती पर बैठा कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था। वो दृश्य आरव के दिल को छू गया। वो रुका, पास गया, और पूछा — “क्या कर रहे हो?”लड़का बोला — “सर, मैं भी टाइपिंग सीखना चाहता हूँ… ताकि एक दिन आप जैसा बन सकूँ।”

बस उसी पल आरव ने तय कर लिया — अब वो खुद की उड़ान से दूसरों के लिए रास्ता बनाएगा।कुछ महीनों में उसने अपने घर के एक कमरे को “Free Typing Center for Divyang Students” में बदल दिया। पुरानी कंप्यूटर मशीनें जुटाईं, कुछ दोस्तों ने मदद की, और उसने हर उस बच्चे को बुलाया जिसे समाज ने “बेबस” कहा था।

हर शाम जब कमरे की लाइटें जलतीं, तो वहाँ कीबोर्ड की आवाज़ें किसी मंदिर की घंटियों जैसी लगतीं — उम्मीद की ध्वनि, जो हर उंगली में भविष्य की लकीरें लिख रही थी।आरव बच्चों से कहता जिसे ज़िंदगी ने पैर नहीं दिए, वो शिकायत न करे।क्योंकि शायद खुदा ने उसे आसमान छूने के लिए चुना है।”

12 मिलियन व्यूज़ यूट्यूब वीडियो 

धीरे-धीरे उसके सेंटर से कई बच्चे सरकारी और प्राइवेट नौकरियों में पहुँचे। किसी ने बैंक में टाइपिस्ट की नौकरी पाई, किसी ने डेटा ऑपरेटर बनकर अपने घर की गरीबी मिटाई। और जब भी कोई बच्चा सफल होता, आरव उसे देखकर वही लाइन कहता —ये उड़ान मेरी नहीं, हमारी है।”आज आरव का नाम सिर्फ सरकारी रजिस्टरों में नहीं, बल्कि हजारों दिलों में दर्ज है। उसने साबित कर दिया कि शरीर का कोई हिस्सा अगर साथ छोड़ दे, तो भी हिम्मत का दिल धड़कता रहे तो इंसान अपंग नहीं, अपराजेय बन जाता है।

उसकी व्हीलचेयर अब ज़ंजीर नहीं, एक “उड़ान का पहिया” बन चुकी थी — जो हर रोज़ किसी न किसी को ये सिखा रही थी कि पैरों के बिना भी, इंसान अगर चाहे तो पूरी दुनिया को अपने कदमों पर झुका सकता है।

जब तालीयों में गूंजा एक नाम,और आसमान ने झुककर किया सलाम

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वो शाम कुछ अलग थी। शहर का सबसे बड़ा ऑडिटोरियम खचाखच भरा हुआ था। मंच पर चमकती रोशनी, सामने बैठी भीड़ और दीवारों पर लगे बैनर पर लिखा था National Inspiration Awards – Honouring the Real Heroes of India.सैकड़ों नामों में एक नाम सबसे ऊपर चमक रहा था — आरव शर्मा।जब एंकर ने उसका नाम पुकारा, तो पूरा हॉल खड़ा हो गया। तालीयों की गड़गड़ाहट गूँज उठी।

मंच की सीढ़ियों की जगह एक स्लोप बनाया गया था, और उस पर धीरे-धीरे आगे बढ़ती आरव की व्हीलचेयर जैसे हर धड़कन को गर्व से भर रही थी।उसके चेहरे पर वही पुरानी मुस्कान थी — वही जो उसने उस दिन लगाई थी, जब टाइपिंग के पहले अक्षर सीखे थे।मंच पर पहुँचते ही उसने माइक थामा। कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर उसने गहरी साँस लेकर कहा “कभी मेरे गाँव में लोग कहते थे कि ये लड़का दूसरों के सहारे ज़िंदगी काटेगा…आज वही लोग कहते हैं — ‘हमारे गाँव का बेटा आसमान छू आया।’”

हॉल में सन्नाटा छा गया।वो आगे बोला मैंने ज़िंदगी से सीखा है कि दिव्यांगता शरीर में नहीं होती, वो सोच में होती है।अगर सोच मज़बूत हो जाए, तो हाथ पैर नहीं — इरादे चलने लगते हैं।कभी किसी ने पूछा, ‘आरव, तेरे पैर नहीं हैं, फिर तू चलता कैसे है?’मैंने कहा — ‘मैं नहीं चलता, मेरे सपने चलते हैं।’भीड़ में बैठे कई लोग रो रहे थे, लेकिन वो आँसू दुख के नहीं — प्रेरणा के थे।आरव ने माइक नीचे किया, और मंच से उतरते हुए उसकी व्हीलचेयर के पहिए धीरे-धीरे घूम रहे थे — जैसे कोई उड़ान आसमान में अपनी लकीर खींच रही हो।

बाद में उसी रात, जब वो अपने कमरे में लौटा, दीवार पर लटकते उस पुराने टूटे कीबोर्ड को देखा — वही कीबोर्ड जिससे उसकी शुरुआत हुई थी। उसने उसे उठाया, हल्के से झाड़ा और कहा —तूने ही मुझे उड़ना सिखाया, अब मैं दूसरों को पंख दूँगा।”अब आरव देशभर में जाकर भाषण देता है, स्कूलों, कॉलेजों, और संस्थानों में।वो हर मंच पर वही बात दोहराता है —

हम सबके भीतर एक आसमान है।कुछ लोग उसे पैरों से नापते हैं,और कुछ, जैसे मैं…उसे हाथों से छू लेते हैं।उसकी ज़िंदगी अब किताबों में है, डॉक्युमेंट्रीज़ में है, और सबसे बढ़कर उन दिलों में है जहाँ उम्मीद मर चुकी थी।आरव ने सिखाया —कि अगर इंसान अपने हालात को अपनी ताकत बना ले,तो उसकी उड़ान को कोई ज़मीन नहीं रोक सकती।और यूँ, उस लड़के ने जिसने बचपन में बस में अपने पैर खोए थे,आज पूरी दुनिया को ये सिखा दिया कि “पैरों के बिना भी उड़ान भरी जा सकती है।”क्योंकि उड़ान पैरों से नहीं — हौसलों से होती है। ✨

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