Social media Ne Badli jindagi

Social media Ne Badli jindagi गांव का लड़का बना डिजिटल सितारा

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कभी-कभीज़िंदगी का सबसे बड़ा मौका, आपकी सबसे बड़ी कमज़ोरी की जगह से आता है। बस ज़रूरत होती है तो बस उसे पहचानने की और उस पर यकीन करने की। यह बात आज आरिफ पूरे विश्वास के साथ कह सकता है। लेकिन एक ज़माना था जब उसे खुद पर भी यकीन नहीं होता था। निज़ामपुर की उन तंग गलियों में, जहाँ उसका बचपन बीता, लोग उसे “खालिद मिठाईवाले का नाकाम बेटा” कहकर बुलाते थे।

आरिफ के वालिद का सपना था कि उनका बेटा बड़ा आदमी बने, लेकिन आरिफ को नौकरियों के इंटरव्यू में लगातार नाकामी मिल रही थी। मायूसी उसकी सबसे बड़ी साथी बन गई थी। लेकिन फिर एक दिन ऐसा आया जब आरिफ ने अपनी इसी “नाकामयाबी” को अपनी ताकत बना लिया। उसने वह किया जिसने न सिर्फ़ उसकी किस्मत, बल्कि पूरे मोहल्ले की तस्वीर बदल कर रख दी। यह कहानी है उस हौसले की, जिसने हार को जीत में बदल दिया।

पहला पैराग्राफ: वह रमज़ान की वह शाम और एक नई शुरुआत
छोटेसे कस्बे निज़ामपुर की गलियों में आरिफ का बचपन बीता। उसके वालिद खालिद एक छोटी सी मिठाई की दुकान चलाते थे, जो पीढ़ियों से चली आ रही थी। उनका सपना था कि आरिफ बड़ा होकर इंजीनियर बनेगा और शहर में अपना नाम रोशन करेगा। आरिफ ने भी पूरी लगन से पढ़ाई की, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। नौकरी के इंटरव्यू में लगातार नाकामी मिली। हर रिजेक्शन के बाद आरिफ की हिम्मत थोड़ी और टूटती जाती।

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आख़िरकार, वह निराश होकर गाँव लौट आया और वालिद की दुकान पर हाथ बंटाने लगा। उसका दिल हमेशा कुछ अलग करने का करता, लेकिन कोई रास्ता नज़र नहीं आता था। उसकी एकमात्र दुनिया उसका साधारण सा स्मार्टफोन था, जिस पर वह शाम को YouTube के वीडियो देखता। वह दूसरे जवानों की कामयाबी की कहानियाँ देखता और सोचता कि कब उसकी ज़िंदगी में भी ऐसा मोड़ आएगा।

एक रमज़ान की शाम की बात है। आरिफ दुकान पर इफ्तार का सामान लगा रहा था। उसने देखा कि लोग उसके वालिद के हाथ की बनी खास ‘नरगिसी सेवइयाँ’ और ‘शाही टुकड़े’ के लिए लाइन में खड़े हैं। उसके वालिद के हाथ का जादू लोगों को अपनी तरफ खींचता था। तभी उसके दिमाग में एक ख्याल कौंधा। उसने सोचा कि क्यों न इस पुराने खाने की विधि को दुनिया के सामने लाया जाए? उसने अपना फोन निकाला और चुपचाप वीडियो बनाना शुरू कर दिया।

उस रोज शाम को, उसने एक यूट्यूब चैनल बनाया और नाम रखा – “निज़ामपुर की रसोई: दस्तूर-ए-पकवान”। पहला वीडियो था “हमारे खास शाही टुकड़े बनाने की विधि”। वीडियो बनाना आसान नहीं था। कैमरे के लिए उसने अपना पुराना स्मार्टफोन इस्तेमाल किया। रोशनी के लिए दुकान की ट्यूबलाइट का सहारा लिया। आवाज़ में शोर था, वीडियो क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन आरिफ ने हार नहीं मानी।

उसने वीडियो एडिट करना सीखा और उसे अपलोड कर दिया। पहले हफ्ते में वीडियो को सिर्फ ४०-५० व्यूज मिले।मायूसी हुई, लेकिन फिर एक कमेंट ने उसका हौसला बढ़ाया। एक यूजर ने लिखा, “बहुत शुक्रिया! मैं दुबई में रहता हूँ और सालों बाद इस रेसिपी को देखकर मेरे बचपन की यादें ताजा हो गईं।” यह कमेंट पढ़कर आरिफ की आँखों में चमक आ गई। उसे अहसास हुआ कि वह सही रास्ते पर है।

Social media Ne Badli jindagi संघर्ष का दौर और यकीन की जीत

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शुरुआतीदिनों में आरिफ को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। मोहल्ले के लोग उसका मज़ाक उड़ाते थे। कोई कहता, “यह क्या बेवकूफी है? मिठाई बनाना कोई बड़ा काम है क्या?” कोई कहता, “इसकी उम्र के लड़के नौकरी कर रहे हैं और यह मोबाइल में बच्चों जैसे खेल रहा है।” उसके वालिद भी शुरू में नाराज़ रहते थे। वह चाहते थे कि आरिफ दुकान संभालने में उनका हाथ बटाए, न कि वीडियो बनाने में वक्त बर्बाद करे।

लेकिन आरिफ की वालिदा, बेगम रज़िया, उसके साथ खड़ी थीं। वह कहतीं, “अगर यह कुछ अलग करना चाहता है, तो उसे मौका तो मिलना चाहिए।” आरिफ ने अपनी वालिदा के इस यकीन को कभी निराश नहीं किया। वह रोज नई रेसिपीज ढूंढता, वीडियो बनाता और एडिट करता। उसने सीखा कि कैसे बेहतर शॉट्स लिए जाते हैं, कैसे अच्छी रोशनी की जाती है। धीरे-धीरे उसके वीडियोज की क्वालिटी में सुधार होने लगा।

एक बार की बात है, ईद के मौके पर आरिफ ने “खास ईदी सेवइयाँ बनाने की विधि” वाला वीडियो बनाया। इस वीडियो में उसने अपनी दादी की सिखाई हुई खास तरकीब दिखाई। यह वीडियो वायरल हो गया! हज़ारों लोगों ने इसे देखा, शेयर किया और कमेंट किए। लोगों ने लिखा कि इतनी आसान विधि उन्होंने कहीं और नहीं देखी। इस वीडियो के बाद आरिफ के चैनल के सब्सक्राइबर तेजी से बढ़ने लगे। अब लोग सिर्फ़ रेसिपी ही नहीं पूछते थे, बल्कि उनकी कहानी, उनके गाँव की तहज़ीब के बारे में भी जानना चाहते थे।

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आरिफ ने अपने वीडियोज में सिर्फ़ रेसिपीज ही नहीं, बल्कि अपने गाँव की झलकियाँ, स्थानीय त्योहारों की जानकारी, और पुराने किस्से भी शामिल करने शुरू कर दिए। इससे लोगों की दिलचस्पी और बढ़ गई। अब आरिफ सिर्फ़ एक रसोइया नहीं, बल्कि अपनी तहज़ीब का दूत बन गया था। उसके वालिद का नज़रिया भी बदलने लगा था। जब लोग दूर-दूर से उनकी दुकान पर आने लगे, तो उन्हें अहसास हुआ कि उनका बेटा वाकई में कुछ खास कर रहा है।

कामयाबी की हवा और नई उड़ान

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जैसे-जैसेआरिफ का चैनल मशहूर होता गया, नए मौके भी आने लगे। यूट्यूब से मिलने वाली कमाई ने उसकी माली हालत मज़बूत की। उसने अपना एक छोटा-सा स्टूडियो सेट अप किया, बेहतर कैमरा खरीदा और वीडियो बनाने की क्वालिटी और बेहतर की। उसने अपने चैनल पर विज्ञापन दिखाना शुरू किया। साथ ही, कुछ ब्रांड्स ने उसके साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया। मसालों के ब्रांड, कुकिंग ऐप्स, और किचन के सामान की कंपनियाँ उसे प्रमोट करने के लिए पैसे देने लगीं।

आरिफ ने इन पैसों का अच्छा इस्तेमाल करते हुए अपने वालिद की दुकान का रेनोवेशन करवाया और उसका नाम बदलकर “निज़ामपुर की मिठास” रखा। अब उनकी दुकान सिर्फ़ एक स्थानीय दुकान नहीं, बल्कि एक ब्रांड बन गई थी।आरिफ की कामयाबी का असर पूरे मोहल्ले पर दिखने लगा। उसने कुछ स्थानीय जवानों को अपने साथ जोड़ा और एक छोटी-सी टीम बना ली। उसकी टीम में एक कैमरामैन, एक एडिटर और एक सोशल मीडिया मैनेजर थे।

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इससे कुछ जवानों को रोज़गार मिला। आरिफ ने ऑनलाइन ऑर्डर लेना भी शुरू किया। अब देशभर के लोग उनकी मिठाइयाँ ऑर्डर कर सकते थे। इसके लिए उसने कुछ स्थानीय औरतों को भी काम पर रखा, जो मिठाइयाँ बनाने में माहिर थीं। इस तरह आरिफ की कामयाबी ने पूरे समुदाय की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने में मदद की। आरिफ अब निज़ामपुर का गर्व बन चुका था।

अखबारों और स्थानीय टीवी चैनलों ने उसकी कामयाबी की कहानी छापी। उसे अलग-अलग संस्थाओं से सम्मानित किया गया। लेकिन इन सबके बावजूद आरिफ ज़मीन से जुड़ा रहा। वह अभी भी वही साधारण लड़का था, जो अपने काम से प्यार करता था।

एक नई शुरुआत और अनोखा अंत

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आज आरिफ कायूट्यूब चैनल दस लाख से ज़्यादा सब्सक्राइबर पार कर चुका है। उसकी मिठाई की दुकान एक मशहूर ब्रांड बन गई है। पिछले साल, आरिफ ने अपनी पहली कुकबुक भी लॉन्च की, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया। लेकिन आरिफ की सबसे बड़ी कामयाबी यह नहीं है। उसकी सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि उसने साबित किया कि कामयाबी पाने के लिए शहर जाना ज़रूरी नहीं है।

यूट्यूब वीडियो 11 मिलियन व्यूज़

आप अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी दुनिया में अपनी पहचान बना सकते हैं।

पिछलेमहीने की बात है। आरिफ के पास एक ईमेल आया एक बहुत बड़ी कुकिंग ऐप कंपनी की तरफ से। वे आरिफ को अपनी कंपनी में ‘कंटेंट हेड’ की पोजीशन ऑफर कर रहे थे। तनख़्वाह बहुत अच्छी थी, शहर में रहने की सुविधा थी। आरिफ ने उनका प्रस्ताव सुना, मुस्कुराए और एक लाइन बोले: “शुक्रिया, लेकिन मेरी नौकरी अभी सेकंड्स में शुरू हो रही है। आज मेरे नए वीडियो का टाइटल है – ‘कैसे बनाएं शहर जैसी नौकरी को भी ठुकराने की हिम्मत!'”

इसके साथ ही, आरिफ ने अपने चैनल पर एक नया वीडियो लाइव किया, जिसमें उसने बताया कि कैसे उसने बड़ी कंपनी की नौकरी ठुकराकर अपने सपनों और अपने गाँव के प्रति वफादार रहने का फैसला किया। यह वीडियो रिकॉर्ड तोड़ व्यूज पा चुका है और लाखों जवानों के लिए प्रेरणा बन गया है। आरिफ आज भी निज़ामपुर में रहता है, नए वीडियो बनाता है, और अपनी तहज़ीब को दुनिया के सामने लाने का काम जारी रखे हुए है।

उसकी कहानी हमें सिखाती है कि असली कामयाबी वही है जहाँ आप खुश हों, और कभी-कभी यह खुशी शहर की चकाचौंध में नहीं, बल्कि अपने घर की मिट्टी की खुशबू में छिपी होती है।

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