Tooti Chappal Se Trophy Tak

Tooti Chappal Se Trophy Tak मिट्टी में जन्मा ख्वाब

Tooti Chappal Se Trophy Tak

कभी किसी ने नंगे पांव सपना देखा है? जहां लोग जूते खरीदने की सोचते हैं, वहां वो अपनी किस्मत दौड़ाने की सोचता था। उसके पास मैदान नहीं था, लेकिन जुनून था जो आसमान को हिला दे।गरीबी ने उसके पैरों में छाले दिए, मगर हौसले ने उन छालों को तमग़े बना दिया।और पहले जो लड़का टूटी चप्पल में दौड़ता है… कल वही तिरंगे के साथ दौड़ने वाला है। जानें कैसे हुआ यह। “यह कहानी हर उस खिलाड़ी की है जिसने हार से नहीं, हालात से लड़ा है।

रात का अंधेरा था, हवा में मिट्टी की खुशबू तैर रही थी। गांव के उस मैदान में सन्नाटा पसरा था, बस एक आवाज़ गूंज रही थी —टप… टप… टप…ओर वो किसी के नंगे पैरों की थी।एक नाम जो गांव के किसी रिकॉर्ड में नहीं लिखा था, लेकिन किस्मत की किताब में ज़रूर दर्ज होने वाला था।साधारण चेहरा, थकी हुई आंखें, और उन आंखों में छिपा एक ऐसा सपना जो किसी तूफ़ान से कम नहीं था।वो ठंडी मिट्टी पर खड़ा था, ऊपर आसमान की ओर देखकर बोला — आज सब हंस रहे हैं मुझ पर… पर एक दिन मैं हंसूंगा, जब सब मेरे लिए ताली बजाएंगे।”

उसके पास न जूते थे, न ट्रेनिंग, न कोच।लेकिन उसके पास था जुनून, और वो किसी भी यूनिफॉर्म से बड़ा होता है।सुबह चार बजे उठना, मां के बर्तन धोना, फिर खेतों में दौड़ना — यही उसके दिन भर का रूटीन था।गांव के बच्चे जब स्कूल जाते, अर्जुन उस वक़्त पसीने में भीगकर अपने सपनों को सिंचता।गांव वाले ताने मारते — “अरे अर्जुन, तेरे बस का नहीं ये खेल-खिलाड़ी का नाटक!”वो मुस्कुरा देता —जब तक जान है, तब तक मैदान मेरा है!”

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उसकी मां,कभी-कभी उसे देखकर रो पड़ती —बेटा, क्यों इतना थकाता है खुद को?”अर्जुन का जवाब हमेशा एक ही होता “अम्म, मिट्टी में हीरा तभी बनता है जब वो आग से गुज़रे।हर सुबह वो खेतों के बीच दौड़ता — धूल उड़ती, पांवों से खून निकलता, पर वो रुकता नहीं था।कभी सूरज उसके पीछे दौड़ता, कभी वो सूरज से आगे निकलने की कोशिश करता।वो खुद से लड़ रहा था, हालात से नहीं।

और जब थककर ज़मीन पर बैठता, तो मिट्टी को छूकर कहता “एक दिन यही मिट्टी मेरी जीत की गवाह बनेगी।कहानी की शुरुआत यहीं से होती है —एक टूटी चप्पल, एक गरीब घर, और एक बड़ा सपना।जिसे दुनिया मज़ाक समझ रही थी, वही सपना एक दिन भारत का नाम रोशन करने वाला था।लेकिन उसे नहीं पता था कि अगली सुबह उसका सबसे बड़ा इम्तिहान आने वाला है…एक ऐसा हादसा, जो उसकी दौड़ ही नहीं, ज़िंदगी की रफ्तार भी छीन लेगा।

Tooti Chappal Se Trophy Tak वो हादसा जिसने सब छीन लिया

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दूसरे दिन जब सुबह को सूरज धीरे-धीरे खेतों के पीछे से झांक रहा था, और अर्जुन हमेशा की तरह मिट्टी पर अपनी दौड़ शुरू कर चुका था।हवा में ठंडक थी, पर उसके बदन से पसीना बह रहा था।हर कदम के साथ वो अपने सपने के थोड़ा और करीब जा रहा था…या शायद, उसी सपने के अंत की तरफ़।वो दिन बाकी दिनों जैसा नहीं था।गांव के मेले में स्पोर्ट्स इवेंट था — अर्जुन पहली बार पूरे जिले की निगाहों में आने वाला था।मां ने सुबह ताबीज़ पहनाते हुए कहा था —

बेटा, आज जीत या हार की नहीं, बस खुद पर भरोसे की दौड़ है।अर्जुन मुस्कुराया ।अम्मा, जब तक तेरी दुआ है, मैं हार भी जाऊं तो जीत जाऊंगा।मैदान लोगों से भरा था। बच्चे, बुजुर्ग, यहां तक कि स्कूल मास्टर भी अर्जुन को देखने आए थे।सामने खड़े खिलाड़ियों के पास नए जूते, ट्रैक सूट, और कोच थे।अर्जुन… बस एक पुरानी बनियान, टूटी चप्पलें और वो आंखें — जिनमें तूफ़ान था। स्टार्टिंग सीटी बजी।अर्जुन झुक गया, मिट्टी ने उसके घुटनों को छुआ — जैसे उसे आशीर्वाद दे रही हो।

“रेडी… सेट… गो!”और वो दौड़ा — हवा को चीरते हुए, सपनों को पीछे छोड़ते हुए।शुरुआत में सब उससे आगे थे, लेकिन कुछ सेकंड में वो सबको पार कर चुका था।भीड़ चिल्ला रही थी,अर्जुन! अर्जुन! उसके पांव ज़मीन पर नहीं, जैसे आसमान पर दौड़ रहे थे।बस पाँच सेकंड और —फिनिश लाइन सामने थी।

और तभी…अचानक एक ज़ोरदार “क्रैक” की आवाज़ आई।उसकी चप्पल का पट्टा टूट गया।उसका पांव फिसला… और वो पूरी रफ़्तार में गिर पड़ा।लोग चीख उठे।मां दौड़कर आई, अर्जुन के घुटनों से खून बह रहा था।वो दर्द में था, मगर उसकी नज़र फिनिश लाइन पर थी —बस पाँच क़दम दूर।वो रेंगते हुए आगे बढ़ा।हर इंच मिट्टी, हर बूंद खून उसके साथ मिल गई।भीड़ खामोश थी।फिनिश लाइन के पास पहुंचकर उसने हाथ से लाइन को छू लिया —

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और बेहोश होकर गिर गया।भीड़ तालियां बजाने लगी, पर अर्जुन कुछ सुन नहीं पा रहा था।एम्बुलेंस की सायरन गूंज उठी।मां के आंसू उसके माथे पर गिर रहे थे बेटा, उठ जा… तेरी दौड़ अभी ख़त्म नहीं हुई…अस्पताल में जब होश आया, तो डॉक्टर ने कहा —लड़के, तुम्हारे पैर में गहरा फ्रैक्चर है। कुछ महीनों तक दौड़ नहीं सकते।”उसके लिए ये जुमला गोली से कम नहीं था।उसने खिड़की से बाहर देखा — मैदान नज़र नहीं आ रहा था, पर मिट्टी की खुशबू अब भी वही थी।

उसने धीमी आवाज़ में कहा —अगर पैर टूटा है तो क्या हुआ, हौसला तो अभी जिंदा है।”वो मुस्कुराया, मगर उस मुस्कान के पीछे टूटे सपनों की चुभन छिपी थी।उस रात अर्जुन ने खुद से एक वादा किया अब दौड़ सिर्फ मैदान में नहीं, ज़िंदगी से भी लगानी है।वो हादसा उसकी हार नहीं था,वो उसकी नई शुरुआत का सबक था।

जीत की जंग

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अस्पताल का कमरा अब उसके लिए जेल बन चुका था।
चार दीवारों के बीच बंद वो लड़का, जो कभी हवा से बातें करता था।वो बार-बार अपनी पट्टी बंधी हुई टांग को देखता, और अपने हाथों की मुठ्ठियाँ भींच लेता।डॉक्टरों ने कह दिया था —कम से कम छह महीने तक दौड़ना मुमकिन नहीं।”
लेकिन अर्जुन के अंदर का जुनून… अब ‘नामुमकिन’ को ‘लक्ष्य’ बना चुका था।

हर रात वो अपने कमरे की खिड़की से बाहर आसमान को देखता और बुदबुदाता …अगर तूने मुझसे दौड़ छीन ली है, तो सांस भी ले ले। क्योंकि मैं बिना दौड़े जी नहीं सकता।धीरे-धीरे उसने बैसाखियों पर चलना शुरू किया।हर कदम दर्द देता था, पर वो दर्द को ‘गुरु’ मान चुका था।मां देखती, तो रो पड़ती —बेटा, अब बस कर… शरीर तेरा साथ नहीं देगा।”
अर्जुन मुस्कुराता —अम्मा, जब दर्द सीमा पार कर ले, तो वहीं से मंज़िल शुरू होती है।”

दिन बीतते गए, और अर्जुन ने अपने छोटे-से कमरे को जिम बना लिया।पुराने टायरों से वेट बनाया, पानी से भरे बाल्टी डम्बल बन गए, और खेत की पगडंडी उसका ट्रैक।कभी-कभी वो दर्द से गिर पड़ता, लेकिन अगले ही पल खुद को उठाता।वो कहता जो गिरने से डर गया, वो उठने का हक़दार नहीं।गांव के बच्चे दूर से देखते, कहते —देखो, पागल फिर दौड़ रहा है।लेकिन वही पागल अब जुनून की परिभाषा बन चुका था।

एक दिन, गांव के स्कूल मास्टर ने उसे देखा और बोले —
अर्जुन, ज़िला स्तर पर सेलेक्शन ट्रायल है… जाना चाहेगा?”
वो चुप रहा, बस अपने पैर की पट्टी खोली, और बोला“मैंने तो दौड़ना बंद ही नहीं किया मास्टरजी… बस लोगों ने देखना बंद कर दिया था।”ट्रायल वाले दिन, सूरज बिल्कुल वैसे ही उगा जैसे उस हादसे वाले दिन उगा था।मां ने उसके माथे पर हाथ रखा “इस बार ताबीज़ नहीं दूंगी बेटा, क्योंकि अब तेरा यक़ीन ही सबसे बड़ा ताबीज़ है।”

मैदान वही था, मगर अर्जुन नहीं।अब वो टूटी चप्पलों वाला नहीं, टूटी हड्डियों से बना योद्धा था।सीटी बजी, और वो दौड़ा हर कदम के साथ उसके पुराने ज़ख्म जल उठे, मगर उसकी रफ्तार ने दर्द को पीछे छोड़ दिया।भीड़ में कोई यक़ीन नहीं कर पा रहा था कि वही लड़का, जो महीनों पहले स्ट्रेचर पर गया था, अब हवा को भी पीछे छोड़ रहा है।फिनिश लाइन पार करते वक्त उसने अपनी आंखें बंद कीं जैसे अपने दर्द को वहीं छोड़ रहा हो।जब उसने आंखें खोलीं, तो तालियों की गूंज हवा में थी।

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मास्टरजी ने आकर कहा अर्जुन, तू सिर्फ़ जीता नहीं… तूने हारे हुए लोगों को उम्मीद दे दी है।अर्जुन ने मुस्कुराकर आसमान की तरफ देखा और कहा “अब पता चला, हादसे ने मुझे तोड़ा नहीं था… तराशा था।वो दिन उसकी कमबैक की शुरुआत थी।अब उसके कदमों की आवाज़ सिर्फ मिट्टी नहीं सुन रही थी —पूरा गांव सुन रहा था, और हर दिल में बस एक नाम गूंज रहा था “अर्जुन!

टूटी चप्पल से ट्रॉफी हासिल किया

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भीड़ की गड़गड़ाहट के बीच अर्जुन के कानों में बस एक आवाज़ गूंज रही थी — “तूने कर दिखाया…वो मिट्टी में घुटनों के बल गिर पड़ा, हाथों से ज़मीन को छूकर माथे से लगाया।उसके आंसू अब हार के नहीं, जीत के थे।वो मिट्टी जिसने उसके सपनों को कभी रोकना चाहा था, आज उसी मिट्टी ने उसे अपने बेटे की तरह गले लगा लिया था। कुछ हफ्तों बाद, अख़बारों में सुर्ख़ियाँ थीं —“गांव का लड़का अर्जुन बना ज़िला चैंपियन!”स्कूल, गांव, शहर — हर जगह उसी का नाम था।

लेकिन अर्जुन अब भी वैसा ही था — साधारण कपड़ों में, पर असाधारण इरादों वाला। फिर आया National Selection Camp का दिन। स्टेडियम में बड़े-बड़े खिलाड़ी, चमकदार जूते, प्रोफेशनल कोच और कैमरे। अर्जुन अपनी वही टूटी चप्पल पहनकर पहुंचा। एक कोच हंस पड़ा —“ये भी भागेगा National Trials में?”अर्जुन ने बस मुस्कुराकर जवाब दिया “सर, जूते नहीं दौड़ते… इरादे दौड़ते हैं।”उस दिन जब ट्रायल शुरू हुआ, सबकी निगाहें उस एक गरीब लड़के पर टिक गईं।

वो दौड़ा, जैसे हवा का बेटा हो —हर कदम में मेहनत की मिट्टी थी, हर सांस में मां की दुआ थी।दौड़ खत्म होते ही जब scoreboard पर उसका नाम सबसे ऊपर आया,तो पूरे मैदान ने खड़े होकर तालियाँ बजाईं।पुरस्कार समारोह में जब मंच पर उसका नाम पुकारा गया —“National Level Gold Medal – Arjun Kumar!तो उसकी मां की आंखों से आंसू बह निकले।वो धीरे से मंच की तरफ बढ़ी, और उसके हाथ में वो टूटी हुई चप्पल रख दी, जो सालों पहले फट गई थी।

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अर्जुन ने उसे अपने सीने से लगाया और बोला —“मां, अब ये चप्पल नहीं… मेरी ट्रॉफी है।”पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।कोच, अधिकारी, सब खड़े होकर उस लड़के को सलाम कर रहे थे,जिसने साबित कर दिया था कि गरीबी कभी कमजोरी नहीं होती — अगर सपने सच्चे हों।पत्रकारों ने पूछा “अर्जुन, तुम्हें सबसे बड़ी जीत किस बात की लगी?”वो मुस्कुराया और बोला —“जब लोग मुझे ‘गरीब का बेटा’ कहते थे, मैं चुप रहता था…

आज वही लोग अपने बच्चों से कहते हैं — ‘अर्जुन जैसा बनो।’ यही मेरी असली जीत है।”उस दिन अर्जुन मंच से उतरा, तो भीड़ ने उसे कंधों पर उठा लिया।फ्लैशलाइट्स चमक रही थीं, हवा में उसका नाम गूंज रहा था।और उसी भीड़ में, एक छोटा बच्चा अपनी फटी चप्पलों को देख मुस्कुरा रहा था —क्योंकि अब उसे यक़ीन हो चुका था कि टूटी चप्पल से भी ट्रॉफी तक जाया जा सकता है।

टूटी चप्पल से अंतरराष्ट्रीय ट्रैक तक

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अर्जुन का National Level Gold जीतना सिर्फ शुरुआत थी। कुछ महीने बाद, उसे International Junior Track Championship के लिए टीम इंडिया में चुना गया। स्टेडियम में दुनिया भर के खिलाड़ी थे, चमकदार ट्रैक, बड़े स्क्रीन और हर कोने में कैमरे।पहली ही ट्रेनिंग में बड़े खिलाड़ी उसे हल्के में लेने लगे। एक कोच हँसकर बोला ये छोटा लड़का टिक पाएगा?”अर्जुन मुस्कुराया —जूते बदल सकते हैं, लेकिन जज़्बा नहीं।”

अर्जुन ने अपनी दिनचर्या में कठिन मेहनत और निरंतर अभ्यास रखा। हर सुबह सूरज निकलने से पहले दौड़ना, हर शाम थकावट के बावजूद अभ्यास करना, और हर कदम में अपनी मेहनत और मां की दुआ को महसूस करना — यही उसकी असली तैयारी थी।फाइनल रेस का दिन आया। पूरे स्टेडियम की निगाहें सिर्फ उन दो मिनटों पर थीं। अर्जुन ने शुरू किया और हर कदम के साथ महसूस किया कि यह दौड़ सिर्फ दौड़ नहीं, बल्कि उसका संघर्ष, उसकी मेहनत और उसके सपनों की जीत है।

अंतिम 100 मीटर में उसने सबको पीछे छोड़ दिया। हवा में उसकी तेजी, दिल में हौसला और आंखों में दृढ़ निश्चय — सब कुछ बस फिनिश लाइन की ओर था।जैसे ही उसने फिनिश लाइन पार की, स्टेडियम तालियों और चीयरिंग से गूंज उठा। अर्जुन ने महसूस किया कि हर दर्द, हर गिरना, हर फटी चप्पल — सब कुछ अब सार्थक हो गया था।पुरस्कार समारोह में अर्जुन ने International Gold Medal उठाई। उसकी मां की आंखों में आँसू थे। अर्जुन ने अपनी टूटी चप्पल याद की और फिर सामने खड़े हजारों दर्शकों की ओर देखा।

फिर उसने अपने दिल की आवाज़ में कहा ।मैं कभी खास नहीं था, मेरे पास जूते नहीं थे, लेकिन मेरे पास सपने और हौसला था। हर गिरावट ने मुझे मजबूत बनाया, हर कठिनाई ने मुझे दौड़ना सिखाया। अगर आप सच में चाहो, कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती। याद रखो — असली जीत पैरों से नहीं, दिल से दौड़ने वालों की होती है। और आज मेरी यह जीत, हर उस बच्चे के लिए है, जो अपने सपनों से डरता है।भीड़ खड़ी हो गई, तालियों की गड़गड़ाहट और कैमरों की चमक के बीच, एक छोटा बच्चा अपनी फटी चप्पलों को देखकर मुस्कुराया।

अब उसे यकीन हो चुका था — टूटी चप्पल भी गोल्ड तक ले जा सकती है, अगर तुम दिल से दौड़ो।

 

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